जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने पूर्व मुख्यमंत्री, पांच बार के सांसद और वर्तमान में लोकसभा के सदस्य फारूक अब्दुल्ला पर लगाए गए जन सुरक्षा कानून (पीएसएस) को शुक्रवार को तत्काल प्रभाव से हटा लिया। केंद्र शासित क्षेत्र के गृह सचिव शालीन काबरा की तरफ से जारी आदेश के मुताबिक श्रीनगर के जिलाधिकारी द्वारा 15 सितम्बर को जारी पीएसए और फिर 13 दिसम्बर को इसकी अवधि तीन महीने के लिए बढ़ाए जाने को समाप्त कर दिया गया है। अब्दुल्ला पिछले वर्ष पांच अगस्त से एहतियातन हिरासत में थे। इसी दिन केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया था। वह पहले मुख्यमंत्री थे जिनके खिलाफ पीएसए लगाया गया था। यह कड़ा कानून उनके खिलाफ 15 सितम्बर को लगाया गया था। उसके कुछ घंटे पहले ही एमडीएमके नेता वाइको की याचिका पर उच्चतम न्यायालय सुनवाई करने वाला था। वाइको का दावा था कि अब्दुल्ला को अवैध रूप से हिरासत में रखा गया है।
उन्हें जन सुरक्षा कानून के तहत नजरबंद किया गया था। इस कानून के तहत अधिकारी किसी व्यक्ति को सुनवाई के बगैर तीन महीने तक हिरासत में रख सकते हैं। इसे दो वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) के संरक्षक को रिहा करने का निर्णय शुक्रवार को तीन महीने की अवधि बीतने से पहले किया गया है। उनकी रिहाई के तुरंत बाद नेकां ने बयान जारी कर निर्णय का स्वागत किया और केंद्र शासित प्रशासन से अपील की कि पार्टी के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला सहित अन्य नेताओं को भी रिहा किया जाए। नेकां के बयान के मुताबिक इसके संरक्षक की रिहाई जम्मू-कश्मीर में वास्तविक राजनीतिक प्रक्रिया की पुनर्बहाली की तरफ सही कदम है। अधिकारियों ने कहा कि जिला अधिकारी शाहिद इकबाल चौधरी अब्दुल्ला के आवास पर गए और समझा जाता है कि उन्हें रिहाई का आदेश सौंपा। फारूक अब्दुल्ला के बेटे उमर अब्दुल्ला और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती पर छह फरवरी को पीएसए लगाया गया था। उसी दिन उनकी छह महीने की हिरासत अवधि समाप्त हो रही थी।