• पुतिन ने मध्यपूर्व से आतंकियों के आर्मेनिया के खिलाफ लड़ाई लड़ने पर गंभीर चिंता जताई

मॉस्को। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मध्यपूर्व से आतंकियों के आर्मेनिया के खिलाफ लड़ाई लड़ने पर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने शुक्रवार को आर्मेनिया के प्रधानमंत्री निकोलियन पशिनियन से फोन पर बात कर हालात की जानकारी ली। क्रेमलिन ने एक बयान में कहा है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अर्मेनियाई प्रधानमंत्री निकोलियन पशिनियन ने नागोर्नो-कराबाख के क्षेत्र में जारी युद्ध को लेकर छह दिनों में तीसरी बार फोन पर बातचीत की है। बताया जा रहा है कि तुर्की के उकसावे वाले बयानों से पुतिन गुस्सा हैं। पुतिन ने अजरबैजान की तरफ से लड़ाई में उतरे तुर्की समर्थित आतंकियों के शामिल होने पर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने सभी देशों से तत्काल युद्धविराम करने की बात भी की है। गौरतलब है ‎कि सोमवार से तुर्की समर्थित अजरबैजान की सेना नागोर्नो-कराबाख के क्षेत्र में अर्मेनिया की सेना के साथ जंग लड़ रही है। माना जा रहा है कि अगर इस युद्ध में रूस ने आर्मेनिया की मदद करना शुरू कर दिया तो युद्ध का दायरा और बढ़ सकता है। इस बीच आर्मीनिया और अजरबैजान में बढ़ती जंग से रूस और तुर्की के इसमें कूदने का खतरा पैदा हो गया है। रूस जहां आर्मीनिया का समर्थन कर रहा है, वहीं अजरबैजान के साथ नाटो देश तुर्की और इजरायल है। एक रिपोर्ट के मुताबिक आर्मेनिया और रूस में रक्षा संधि है और अगर अजरबैजान के ये हमले आर्मेनिया की सरजमीं पर होते हैं तो रूस को मोर्चा संभालने के लिए आना पड़ सकता है।
उधर आर्मेनिया ने कहा है कि उसकी जमीन पर भी कुछ हमले हुए हैं। अजरबैजान के साथ तुर्की और इजरायल खड़े हैं। तुर्की ने एक बयान जारी कहा है कि हम समझते हैं कि इस संकट का शांतिपूर्वक समाधान होगा लेकिन अ‍भी तक आर्मीनियाई पक्ष इसके लिए इच्‍छुक नजर नहीं आ रहा है। हम आर्मेनिया या किसी और देश के आक्रामक कार्रवाई के खिलाफ अजरबैजान की जनता के साथ आगे भी खड़े रहेंगे। माना जा रहा है कि तुर्की का इशारा रूस की ओर था। वहीं इजरायल भी अजरबैजान को घातक हथियारों की सप्लाई कर रहा है। आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच जारी जंग में तुर्की और पाकिस्तान भी शा‎मिल हैं। ये दोनों देश अपने यहां से आतंकियों को अरजबैजान की तरफ से लड़ने के लिए उकसा रहे हैं। वहीं इजरायल अजरबैजान को हथियारों की सप्लाई कर रहा है। अजरबैजान के कुल हथियार खरीद का 60 फीसदी हिस्सा इजरायल से आता है। ऐसे में इजरायली हथियारों की बदौलत वह आर्मेनिया की सेना पर भारी पड़ रहा है। उधर, रूस अपने करीबी आर्मेनिया का खुलकर समर्थन करने से कतरा रहा है। ऐसे में एक पक्ष के मजबूत होने से अजरबैजान का पड़ला भारी पड़ता दिखाई दे रहा है।

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