नई दिल्ली। नीति आयोग ने ऑनलाइन विवाद समाधान पुस्तिका का विमोचन किया है। आयोग के मुताबिक मौजूदा तकनीक के दौर में देश में विवादों के समाधान के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की तरफ बढ़ना बेहद जरूरी हो गया है। इसके जरिए न सिर्फ लोगों को होने वाले अदालती खर्चों को घटाया जा सकता है बल्कि विवाद में होने वाले नुकसान और लगने वाले लंबे समय की भी बचत हो सकेगी। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने इसका शुभारंभ किया है। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन विवाद समाधान व्यवस्था में लोगों को नए तकनीक के जरिए न्याय दिलाने की अपार संभावनाएं हैं। वहीं, उनके मुताबिक इसके जरिए देश में विवादों को सुलझाने का एक बेहतर सिस्टम बनाया जा सकेगा। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा कि ये एक ऐसी व्यवस्था हो सकती है जिससे न सिर्फ विवादों को आसानी से सुलझाने में सहायता होगी बल्कि अदालतों पर पड़ने वाले विवादों से जुड़े मामलों के बोझ को भी घटाने में मदद मिलेगी। 86 पन्ने की हैडबुक में सभी हितधारकों के सुझावों और रिसर्च के जरिए मौजूदा अदालती हालात बताने के साथ साथ इस नई व्यवस्था के जरिए उसे कैसे बदला जा सकता है ये भी बताने की कोशिश की गई है। ऑनलाइन विवाद समाधान या ओडीआर, डिजिटल प्रौद्योगिकी और विवाद समाधान की वैकल्पिक तकनीकियों का उपयोग करते हुए अदालतों के बाहर छोटे और मध्यम दर्जे के विवादों को निपटाने की एक व्यवस्था है। इसमें मध्यस्थता और बीच-बचाव के उपाय किए गए हैं। न्यायपालिका के प्रयासों के चलते जहां अदालतों का डिजिटलीकरण किया जा रहा है, ऐसे में प्रभावी, स्केलेबल और विवादों की रोकथाम तथा समाधान के लिए साझेदारी की व्यवस्था जरूरी हो जाती है। ओडीआर विवादों के प्रभावी और सस्ते समाधान की दिशा में मददगार हो सकती है। हैंडबुक में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक देश में सालाना 1.6 करोड़ मामले अदालतों में पहुंचते हैं। इनमें से 8 लाख बैकलॉग में चलते रहते हैं। साथ ही देश में अदालती मामलों का निपटारा भी लंबा काम होता है। यहां औसतन एक विवाद के निपटारे में औसतन 1445 दिनों का समय लगता है। जो आर्थिक सहयोग और विकास संगठन देशों में सुलझाए जाने वाले मामलों के मुकाबले 6 गुना होता है। वहीं चीन के मुकाबले 3 गुना होता है। यही नहीं देश में अदालती मामलों में वादी के एक बार पहुंचने पर होने वाला औसत खर्चा 497 रुपये है। वहीं वादी को रोजाना होने वाली औसत आय का नुकसान 844 रुपये होता है। भारत जैसे देश में जहां 20 फीसदी आबादी की बचत 500 रुपये से नीचे है, ये व्यवस्था बहुत महंगी साबित होती है। आयोग के मुताबिक अगर कानूनी विवादों को इस नई व्यवस्था के जरिए सुलझाया जाएगा तो न सिर्फ समय बचेगा बल्कि होने वाले खर्च में भी कमी आ सकेगी।

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