में बड़ी संख्या में लंबित मुद्दों को लेकर चिंता जतायी और आम लोगों को जल्द तथा वहनीय न्याय मुहैया कराने की जरूरत पर बल दिया। सदस्यों ने अदालतों खासकर निचली अदालतों के आधारभूत ढांचे में सुधार की भी मांग की। ये सदस्य विधि एवं न्याय मंत्रालय के कामकाज पर उच्च सदन में हुयी चर्चा में भाग ले रहे थे। चर्चा की शुरूआत करते हुए भाजपा के भूपेन्द्र यादव ने कहा कि आम आदमी को ढंग से न्याय मिल सके इसलिए सरकार मुकदमों के लिए अच्छी नीति लेकर आयी है। उन्होंने कहा कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अधिकतर मुकदमों में सरकार एक पक्ष है। उन्होंने कहा कि सरकार ने आम आदमी की न्याय तक पहुंच बढ़ाने के लिए न्याय मित्र और ई पोर्टल जैसी पहल की गयी हैं। देश की आजादी के बाद पहली बार उच्चतम न्यायालय ने अपनी वेबसाइट के जरिये अपने निर्णयों को देश की छह-सात भाषाओं में उपलब्ध कराने की पहल की है। उन्होंने कहा कि विधि मंत्रालय के समक्ष एक बड़ी समस्या न्यायिक आधारभूत ढांचे की है।

उन्होंने कहा कि इस समय देश में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 0.8 प्रतिशत से 0.9 प्रतिशत न्याय प्रदान करने के तंत्र पर खर्च किया जा रहा है। न्यायिक नियुक्ति प्रक्रिया के लिए सरकार के प्रतिबद्ध होने को दावा करते हुए यादव ने अदालतों में बड़ी संख्या में लंबित मामलों को लेकर चिंता जतायी। अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इसकी लंबे समय से मांग की जा रही है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका में सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए।यादव ने ‘‘एक देश, एक चुनाव’’ को देश के विकास के लिए जरूरी बताते हुए कहा कि मौजूदा व्यवस्था में लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय चुनावों के लिए अलग अलग मतदाता सूची होती है। इससे मतदाताओं के नामों में दोहराव की समस्या भी आती है। उन्होंने मतदाता सूची को आधार से जोड़ने का सुझाव दिया।

कांग्रेस की अमी याज्ञनिक ने इस मंत्रालय के बजटीय आवंटन का पूरा उपयोग नहीं होने पर चिंता जतायी। उन्होंने अदालतों में बुनियादी ढांचे का पर्याप्त विकास किए जाने पर जोर देते हुए कहा कि कई अदालत परिसरों में महिलाओं के लिए शौचालय तक नहीं हैं। उन्होंने मौजूदा तंत्र को दुरूस्त करने की जरूरत पर जोर दिया और कहा कि महिलाओं और बच्चों से जुड़े अपराधों से निपटने के लिए कानून बना दिए गए हैं। लेकिन उनके लिए विशेष अदालतों की कमी है। बीजद के प्रसन्न आचार्य ने अदालतों में दशकों से मामलों के लंबित होने पर चिंता जतायी और कहा कि ऐसे मामले भी सामने आए हैं जब आरोपी लंबे समय तक जेल में रहा लेकिन अंतत: लंबी सुनवाई के बाद उसे रिहा कर दिया गया। आचार्य ने अदालतों में बड़ी संख्या में रिक्तियों होने पर चिंता जतायी। उन्होंने सवाल किया कि अदालतों में इतनी छुट्टियां क्यों होती है। उन्होंने कॉलेजियम प्रणाली पर भी सवाल किया और कहा कि दुनिया में कहीं भी न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं की जाती। उन्होंने कहा कि ओड़िशा सहित कई राज्यों में उच्च न्यायालयों की पीठें स्थापित किए जाने की मांग लंबे समय से हो रही है। चर्चा में भाग लेते हुए अन्नाद्रमुक के एस आर बालासुब्रमण्यम ने भी अदालतों के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए अधिक बजटीय आवंटन किए जाने की मांग की।

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