नई दिल्ली। हम जानते हैं कि बुजुर्गों को कोरोनो संक्रमण से गंभीर रूप से बीमार पड़ने की संभावना है, लेकिन ऐसा नहीं है, केवल बुजुर्गों को ही इसका ज्यादा खतरा है। कई देशों में डॉक्टरों को देखने को मिला है कि युवा और स्वस्थ लोग कोरोना की चपेट में जल्दी आ रहे हैं। हाल ही में हुए दो अध्ययनों से संकेत मिलता है कि कोरोना संक्रमण की प्रगति को तय करने में मानव शरीर की इंटरफेरॉन प्रतिक्रिया की भूमिका हो सकती है। इंटरफेरॉन हमारी कोशिकाओं द्वारा वायरस को मुक्त करने के लिए वायरस की नकल करते हैं, जो कि एक इम्यून मैकेनिजम हो सकता है। दरअसल प्रकाशित दो पत्रों ने एक साथ पाया कि लगभग 14 प्रतिशत गंभीर कोरोना के मामले संक्रमण के शुरुआती बिगड़ी हुई इंटरफेरॉन प्रतिक्रिया से जुड़े थे। अध्ययन में पता चला कि इंटरफेरॉन प्रतिक्रिया के दो अलग-अलग कारणों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। पहला आनुवंशिक दोषों के कारण और दूसरा खराब एंटीबॉडी द्वारा होता है। जेनेटिक स्टीडी में पाया गया कि कोरोना के कारण जान गंवाने वाले 659 मरीजों में,3.5 प्रतिशत में आनुवांशिक विविधताएं थीं जो इंटरफेरॉन के उत्पादन को रोकती हैं। अध्ययन में समझा सकता है कि पुरुष कोरोना के प्रति अधिक संवेदनशील क्यों हैं क्योंकि एक्स गुणसूत्र पर दोष उन्हें प्रभावित करने की अधिक संभावना है (क्योंकि उनके पास इसकी केवल एक प्रति है जबकि महिलाओं में दो हैं)। वहीं बात करें खराब एंटीबॉडी प्रतिक्रियाओं की जो इंटरफेरॉन उत्पादन को रोकती हैं। इस तरह के इंटरफेरॉन एंटीबॉडी गंभीर बीमारी वाले 987 रोगियों में से 101 में पाए गए थे। गौरतलब है कि हल्के या एसिम्टोमैटिक संक्रमण वाले 663 लोगों में से किसी में भी ये इंटरफेरॉन-एंटीबॉडी नहीं थे।

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