नई दिल्ली। अपशिष्ट जल की निगरानी करने से अधिकारियों को दो हफ्ते पहले ही कोविड-19 के मामलों में होने वाली संभावित वृद्धि का पता लग सकता है। यह दावा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गांधीनगर के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में किया है। अनुसंधान टीम में गुजरात जैवप्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र (जीबीआरसी) के वैज्ञानिक भी शामिल थे। उन्होंने अध्ययन के दौरान गांधीनगर में अपशिष्ट जल में सार्स-सीओवी-2 (कोरोनो वायरस) की अनुवांशिकी सामग्री और कोविड-19 के मामलों के बीच संबंध का पता लगाने की कोशिश की। इस दौरान उन्होंने पाया कि अपशिष्ट जल की निगरानी बीमारी की पहले ही चेतावनी देने में कारगर हो सकती है। आईआईटी गांधीनगर में पृथ्वी विज्ञान विभाग में प्रोफेसर एवं अनुसंधान का नेतृत्व करने वाले मनीष कुमार ने कहा, यह भारत में साप्ताहिक निगरानी के आधार पर पहला सबूत है कि अपशिष्ट जल की निगरानी से कोविड-19 की पूर्व में ही चेतावनी दी जा सकती है। इस दौरान कहा कि नतीजे बहुत ही उत्साहजनक है और हम इन नतीजों को अधिकारियों से साझा करने की योजना बना रहे हैं। प्रोफेसर कुमार ने कहा कि यह वक्त की जरूरत है कि अधिकारी कोविड-19 से निपटने की नीति में अपशिष्ट जल निगरानी को भी शामिल करें।
एक अन्य प्रोफेसर प्रसून भट्टाचार्य भी इससे सहमत हैं कि भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में कोविड-19 महामारी को रोकने के उपाय में अपशिष्ट जल निगरानी को शामिल करना चाहिए। उल्लेखनीय है कि अध्ययन को गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जीपीसीबी) की साझेदारी में किया गया और अध्ययन जर्नल इनवायरमेंटल रिसर्च की समीक्षाधीन है। यह अनुसंधान पिछले साल मई में अहमदाबाद में किए गए अध्ययन पर आधारित है,इसके तहत अनुसंधान दल ने भारत में पहली बार अपशिष्ट जल में सफलतापूर्वक कोरोना के होने का पता लगाया था। नवीनतम अध्ययन में अनुसंधान दल ने गत वर्ष सात अगस्त से 30 सितंबर के बीच चार अपशिष्ट जल शोधन इकाइयों से लिए गए 43 नमूनों में सार्स-सीओवी-2 आरएनए (अनुवांशिकी सामग्री) का विश्लेषण किया। अध्ययन के दौरान सप्ताह में दो बार नूमने एकत्र किए थे और यह प्रक्रिया दो महीने तक चली। अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक सार्स-सीओवी-2 के तीन जीन पर गौर किया गया और इनमें से दो या सभी की उपस्थिति की सूरत में नमूने को पॉजिटिव माना गया। अध्ययन के दौरान कुल 43 नमूनों में से 40 नमूने संक्रमित मिले। इसके बाद इन नमूनों और संक्रमण के आधिकारिक आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया और देखा गया कि इससे अपशिष्ट जल के नमूनों में वायरस के अंश के संघनन में कितना बदलाव हो रहा है।

#gajraj

Previous articleनवजात शिशुओं की गर्भनाल से संभव हैं कोरोना वायरस का इलाज, शोध में खुलासा
Next articleकोरोना टीकाकरण: अलग-अलग कंपनियों के डोज देने की सलाह नहीं दी जा सकती

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here