काबुल। अफगानिस्तान में तालिबान अपनी सरकार बनाने की तैयारी कर रहा है। दूसरी तरफ देश पर भीषण खाद्यान्न संकट मंडरा रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान में एक महीने के अंदर खाने का संकट पैदा हो सकता है। हर तीन में से एक व्यक्ति को भूख का सामना करना पड़ सकता है।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, अफगानिस्तान के आधे से ज्यादा बच्चे इस समय खाने को तरस रहे हैं। अफगानिस्तान पहले से दुनिया के सबसे गरीब देशों में एक है। मौजूदा राजनीतिक अस्थिरता के कारण और 4 दशकों के युद्ध की तबाही की वजह से देश में 72 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे पहुंच गए हैं।
पिछले कुछ दिनों में अफगानिस्तान में खाने-पीने की वस्तुएं करीब 50 फीसदी महंगी हो चुकी हैं, जबकि पेट्रोल की कीमतों में 75 फीसदी इजाफा हुआ है। कोरोना वायरस महामारी से पहले, देश की 54।5 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती थी। पिछले साल, पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा था कि 90 प्रतिशत आबादी दो डॉलर प्रतिदिन से कम पर जीवन यापन कर रही है।
देश की अर्थव्यवस्था ढहने के कगार पर पहुंच गई है। ऐसे में पहले से ही आपदा से जूझ रहे अफगानिस्तान के हालात के और खराब होने की आशंकाएं बढ़ गई है। तालिबान के हिंसा के कारण अब तक पांच लाख से ज्यादा लोग अपना घर-बार छोड़कर दूसरे देशों में शरण ले चुके हैं। ऑफिस फॉर द कॉर्डिनेशन ऑफ ह्यूमैनटेरियन अफेयर्स के मुताबिक अकेले जुलाई में, अफगानिस्तान में आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की संख्या पिछले महीने की तुलना में लगभग दोगुनी हो गई।
तालीबानी शासन के भय और आतंक के कारण इस महीने लगभग 206,967 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। यूएन हाइ कमिश्नर फॉर रिफ्यूजी (यूएनसीएचआर) के मुताबिक विस्थापितों की संख्या अब 570,000 से अधिक हो गई है जिनमें से लगभग 80 प्रतिशत महिलाएं और बच्चे हैं। पिछले दो हफ्तों में अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों ने काबुल हवाई अड्डे से कम से कम 113,500 लोगों को देश से बाहर निकाला है।

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