काबुल। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद से जनजीवन बुरी तरह से अस्त-व्यस्त हो गया है। लोग डर के मारे घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं। व्यापार, उद्योग-धंधे कामकाज सब ठप हैं। बैंकों के हालात ऐसे हैं कि कर्मचारियों को पिछले छह माह से वेतन नहीं मिला है। आम लोग पैसों की किल्लत के कारण अपने घरों के सामान बेचने पर मजबूर हैं।
जो बैंक एटीएम खुले हैं, उनके बाहर लोगों की भारी भीड़ एकत्र है।
नकदी के संकट को देखते हुए बैंको ने एटीएम से कैश की निकासी सीमा को कम कर दिया है। अफगान नागरिक एटीएम से केवल 200 डॉलर तक की नकदी ही निकाल सकते हैं। आर्थिक तंगी को देखते हुए काबुल में सैकड़ों अफगानों ने बैंक के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। न्यू काबुल बैंक के सामने लोगों ने पैसों के लिए नारेबाजी की। इसमें बैंक के भी कई कर्मचारी शामिल हुए। इन कर्मचारियों का कहना है कि पिछले छह महीनों से इनको वेतन का भुगतान नहीं किया गया है।
उन्होंने कहा कि तीन दिन पहले बैंक फिर से खुलने के बावजूद कोई भी नकदी नहीं निकाल पाया है। इस बीच, संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी ने चेतावनी दी कि अफगानिस्तान अब भुखमरी की चपेट में आ रहा है। अगर जल्द कुछ नहीं किया गया तो स्थिति और ज्यादा बिगड़ सकती है। काबुल एयरपोर्ट के बाहर डॉलर की चल रहा
तालिबान के खौफ से देश छोड़कर भागने के लिए काबुल एयरपोर्ट के बाहर अब भी हजारों की संख्या में अफगान नागरिक जुटे हैं। ऐसे में इन लोगों के खाने-पीने के लिए भी कोई व्यवस्था न होने से अफरा-तफरी का माहौल है। एयरपोर्ट के बाहर अपनी बारी का इंतजार कर रहे किसी शख्स को अगर पानी की एक बोतल लेनी हो उसे 40 अमेरिकी डॉलर खर्च करने होंगे यानी करीब 3000 रुपए।
एक प्लेट चावल 100 डॉलर में मिल रहा है, यानी करीब 7500 रुपए। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी यूएनएचसीआर का अनुमान है कि आने वाले महीनों में अगर स्थिति और बिगड़ती है, तो अफगानिस्तान से करीब पांच लाख लोग पलायन कर सकते हैं। यूएनएचसीआर का कहना है कि पिछले हफ्ते तालिबान द्वारा कब्जा किए जाने के बाद अफगानिस्तान की स्थिति अनिश्चित बनी हुई है और उसमें तेजी से बदलाव आ सकती है। एजेंसी ने कहा कि करीब 22 लाख अफगान पहले से ही विदेशों में शरणार्थी के रूप में पंजीकृत हैं। उनमें से लगभग सभी लोग पाकिस्तान और ईरान में हैं।
एजेंसी ने कहा अफगानिस्तान भर में हिंसा में वृद्धि और निर्वाचित सरकार के हटाए जाने से नागरिकों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है तथा आगे और विस्थापन हो सकता है। एजेंसी का अनुमान है कि सिर्फ इस साल सशस्त्र संघर्ष के कारण अफगानिस्तान में 5,58,000 लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं।

















