नई दिल्ली। बहुचर्चित सुनंदा पुष्कर मौत मामले में सात साल बाद उनके पति पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर का राउज एवेन्यू विशेष अदालत से आरोप मुक्त हो जाना दिल्ली पुलिस की कार्यशैली पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। तो क्या मान लिया जाए कि सुनंदा पुष्कर की मौत अबूझ पहेली बनकर रह जाएगी। दिल्ली पुलिस की कार्यशैली पर शुरूआत से ही सवाल उठते रहे हैं। शुरूआत से ही चर्चा है कि जब पुलिस ने सालभर तक जांच करने के बाद हत्या की धारा में मुकदमा दर्ज किया तो उसी दौरान पुलिस द्वारा लीपापोती शुरू हो गई थी। 17 जनवरी 2014 की शाम सुनंदा का शव संदिग्ध परिस्थितियों में चाणक्यपुरी स्थित होटल लीला पैलेस के एक सुइट में मिला था। पहले दिन से ही घटना मीडिया की सुर्खियों में बनी रही। घटना के करीब सालभर बाद दिल्ली पुलिस ने पोस्टमार्टम, विसरा व फोरेंसिक आदि रिपोर्ट के आधार पर अज्ञात के खिलाफ हत्या के आरोप में केस दर्ज किया था। लेकिन एसआइटी को हत्या के अनुरूप कोई सबूत नहीं मिल पाया। इसके बाद पुलिस ने सवा चार साल बाद शशि थरूर के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने व क्रूरता करने की धाराओं में आरोपपत्र दायर किया था। आरोपपत्र के अनुरूप भी पुलिस सबूत नहीं पेश कर पाई, जिससे थरूर के खिलाफ आरोप ही तय नहीं हो सके और ट्रायल शुरू करने की नौबत ही नहीं आई।














