वाशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बड़ा फैसला लेते हुए जर्मनी से अपने करीब 6,400 सैनिकों को वापस लाने और करीब 5,600 सैनिकों को यूरोप के अन्य देशों में भेजने का निर्णय किया है। अमेरिकी रक्षा नेताओं ने पेंटागन की एक योजना के एक बारे में विस्तार से बताते हुए यह जानकारी दी। इस योजना पर अरबों डॉलर का खर्च आएगा और इसे पूरा होने में कई साल लगेंगे। यह फैसला ट्रंप की जर्मनी से सैनिकों को वापस बुलाने की इच्छा को देखते हुए लिया गया है। बड़ी संख्या में सैनिक इटली जाएंगे और कुछ जर्मनी से बेल्जियम में अमेरिकी यूरोपीय कमान मुख्यालय और विशेष अभियान कमान यूरोप जाएंगे। इस योजना का भविष्य अभी अनिश्चित है क्योंकि यह कांग्रेस के समर्थन और फंडिंग पर निर्भर करता है तथा कई सदस्यों ने इस पर विरोध जताया है। सांसदों ने सैनिकों की संख्या में कटौती की निंदा की है।
हालांकि रक्षा मंत्री मार्क एस्पर ने इस योजना का बचाव करते हुए कहा कि वैसे तो यह फैसला ट्रंप के आदेश के बाद लिया गया है लेकिन यह रूस को रोकने, यूरोपीय सहयोगियों को पुन: आश्वस्त करने और सैनिकों को काला सागर तथा बाल्टिक क्षेत्रों में स्थानांतरित करने के वृहद सामरिक लक्ष्यों को भी पूरा करता है। एस्पर ने कहा, ‘हम सैनिकों को मध्य यूरोप, जर्मनी से हटा रहे हैं जहां वे शीत युद्ध के बाद से थे। इससे अमेरिकी सैनिक रूस के नजदीक पूर्व में होंगे जहां हमारे नए सहयोगी हैं।’ बहरहाल ट्रंप ने बुधवार को पत्रकारों से कहा, ‘हम सैनिकों की संख्या कम कर रहे हैं क्योंकि वे (जर्मनी) अपने बिल नहीं चुका रहे हैं। यह बहुत सीधी-सी बात है। उन पर काफी बकाया है।’ उन्होंने कहा कि अगर जर्मनी अपने बिल देना शुरू कर दें तो वे सैनिकों को वहां से वापस बुलाने के फैसले पर फिर से विचार कर सकते हैं। इस बीच नाटो के महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने अमेरिका के कदम का स्वागत किया और कहा कि वाशिंगटन ने हाल ही में इस मामले में सहयोगियों से विचार-विमर्श किया था। वहीं जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने जर्मनी के रक्षा खर्च का बचाव करते हुए कहा कि यह बढ़ा है और देश दो प्रतिशत के मानदंड को पूरा करने की ओर काम करता रहेगा। नाटो देशों ने 2024 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद का दो फीसदी रक्षा पर खर्च करने का संकल्प लिया है और जर्मनी इस लक्ष्य से अब भी पीछे है।

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