नई दिल्ली। अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद हर तरफ मचे तालिबानी कोहराम को देखते हुए राष्ट्रपति जो बाइडेन सवालों के घेरे में है। अब लग रहा है कि खुद बाइडेन भी इस फैसले की वजह से बैकफुट पर आ गए हैं और यही कारण है कि बीते दो हफ्ते से भी कम समय में बाइडेन ने तीन बार सफाई दी है। हालांकि, अपने हालिया संबोधन में राष्ट्रपति बाइडेन ने यह भी कहा है कि वह तालिबान पर प्रतिबंध लगाने को लेकर विचार करेंगे, जिससे यह संकेत मिल रहे हैं कि अब अमेरिका तालिबान के खिलाफ एक्शन के मूड में आ गया है। अफगानिस्तान पर अपनी नीति को लेकर आलोचना झेल रहे बाइडेन ने कहा कि उनका फैसला ‘तार्किक, तर्कसंगत और सही है।’ तालिबान ने अमेरिकी सेना की वापसी से दो हफ्ते पहले ही 15 अगस्त को अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था। अमेरिका द्वारा ट्रेन किए गए अफगानिस्तान सेना के जवान तालिबान लड़ाकों के आगे पस्त हो गए। अब अफगानिस्तान में रहने वाले हजारों लोग तालिबान के शासन से डरकर देश छोड़ने की होड़ में हैं। अफगानिस्तान की स्थिति को देखते हुए बाइडेन प्रशासन को अपने ही देश में विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी की आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। बाइडेन ने एक बार फिर अपने फैसले पर अडिग रहते हुए कहा, ‘मुझे लगता है कि इतिहास में इसे एक तार्किक, तर्कसंगत और सही फैसले के तौर पर दर्ज किया जाएगा।’ अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि वह तालिबान के खिलाफ प्रतिबंधों पर विचार करेंगे। बाइडेन से रविवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब यह पूछा गया कि क्या वह कुछ शर्तों के साथ तालिबान पर प्रतिबंधों का समर्थन करेंगे तो उन्होंने कहा हां, वह इस पर विचार करेंगे। बीते हफ्ते सोमवार को जो बाइडेन ने यह कहा था कि वह अमेरिकी सेना को अफगानिस्तान से वापस बुलाने के अपने फैसले पर अडिग हैं मगर उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि अफगानिस्तान का सरकार का पतना उम्मीद से ज्यादा तेजी से हुआ। इससे पहले 11 अगस्त को भी बाइडेन ने तालिबान के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए अफगानिस्तानियों से अपील की थी कि वे अपने देश के लिए लड़ें। उन्होंने यह भी कहा था कि उन्हें अपनी सेना वापस बुलाने का फैसला लेना का कोई मलाल नहीं है। बाइडेन ने वाइट हाउस में पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा, ‘अफगान नेताओं को एकसाथ आना होगा। उन्हें अपने लिए लड़ना होगा।’ अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि उन्हें अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी का कोई मलाल नहीं है क्योंकि 20 साल से ज्यादा समय में वॉशिंगटन ने इसपर 10 खरब डॉलर से भी ज्यादा खर्च किए हैं और हजारों सैनिकों को खोया है।

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