नई दिल्ली । आंदोलन कर रहे किसानों ने खुला पत्र जारी कर कृषि मंत्री के पत्र का जवाब दिया। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने सरकार के दावों को नकार दिया है। पत्र में बिंदुवार किसानों ने सरकार के दावों का जवाब दिया है। समिति ने सरकार से तीनो कानून वापिस लेने की मांग की है। समिति का कहना है कि सरकार किसानों के मामले पर भ्रम फैला रही है। समिति नेकृषि मंत्री के पत्र का हवाला देते हुए कहा है कि आपका कहना है कि किसानों की जमीन पर कोई खतरा नहीं है, ठेके में जमीन गिरवी नहीं रखी जाएगी और ‘जमीन के किसी भी प्रकार के हस्तांतरण का करार नही होगा’। लेकिन ठेका खेती कानून की धारा 9 में साफ लिखा है कि किसान ने जो लागत के सामान का पेमेंन्ट कम्पनी को करना है, उसकी पैसे की व्यवस्था कर्जदाता संस्थाओं के साथ एक अलग समझौता करके पूरी होगी, जो इस ठेके के अनुबंध से अलग होगा। कर्जदाता संस्थाएं जमीन गिरवी रख कर ही कर्ज देती हैं। सरकारी मंडियां, एमएसपी व सरकारी खरीद पर आपका आश्वासन है कि ये जारी रहेंगे। जब सरकार कारपोरेट को प्रोत्साहित करेगी तो यह व्यवस्थाएं धीरे धीरे बंद हो जाएंगी। आपने दावा किया है कि आपने लागत का डेढ़ गुना एमएसपी घोषित किया है, जो पूरी तरह से गलत है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया है किडेढ़ गुना नहीं दे सकते। कहीं भी मंडी में अपना सामान बेचने के कृषि मंत्री के दावों पर किसान समिति ने कहा कि हर मंडी में पास के किसान कई दिनों तक डेरा डाले बैठे रहते हैं ताकि उनकी फसल खरीद ली जाए, क्योंकि दूसरी किसी मंडी में फसल ढोकर ले जाने का आर्थिक बोझ वे नहीं सहन कर सकते। सरकार कृषि इंफ्रास्टक्चर फंड पर 1 लाख करोड़ रुपये का आवंटन का दावा कर रही है।अच्छा होता कि इस फंड से आप सीधे तौर पर या सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को सिंचाई, ट्रैक्टर व अन्य मशीनरी, लागत की अन्य सामग्री, भंडारण, प्रसंस्करण के उपकरण, शीतगृह तथा बिक्री की व्यवस्था कराते, ताकि किसान इससे लाभान्वित होते। कृषि मंत्री का दावा है कि 80 फीसदी किसान 2 एकड़ से कम के मालिक हैं और आपकी नीतियों से ये लाभान्वित होते रहे हैं। देश भर में हो रहे किसानों के संघर्ष में भाग लेने वाले यही 80 फीसदी किसान हैं जो भारी कर्ज में भी डूबे हुए हैं, जिनके सामने इन कानूनों के कारण जमीन से वंचित होने का खतरा बढ़ गया है। कृषि मंत्री ने फसल बीमा, किसान सम्मान निधि, नीम कोटेड यूरिया, सोइल हेल्थ कार्ड, आदि का हवाला दिया है। सच यह है कि बीमा में निजी कम्पनियों में किसानों के खाते से हर साल करीब 10 हजार करोड़ रूपये कमाए हैं और सभी कल्याण योजनाओं में भ्रष्टाचार बढ़ा है। आपने जो कानून बनाए हैं, उससे किसान भूमिहीन हो जाएगा।