विकास, मदरलैंड वॉइस
22 साल पहले 11 मई 1998 बुद्धपूर्णिमा के दिन ही भारत ने पोखरण में परमाणु परिकक्षण कर दुनिया को अपने परमाणु शक्ति का परिचय दिया |
सफता की पूरी कहानी
पोखरण-2: जिसे “ओप्रशन शक्ति” का नाम दिया गया था, पांच परमाणु बम परीक्षणों की श्रृंखला जो मई 1998 में पोखरण परीक्षण रेंज पर किये गए ओप्रशन शक्ति का एक हिस्सा है। यह दूसरा भारतीय परमाणु परीक्षण था, पहला परीक्षण, मई 1974 में आयोजित किया गया था। जिसका कोड नाम स्माइलिंग बुद्धा (मुस्कुराते बुद्ध) था |
परिक्षण का मुख्य उदेश
इस परिक्षण का मुख्य उदेश था भारत को परमाणु शक्ति प्रदान करना जिसमे भारतीय बैज्ञानिको को सफलता मिली |
राजस्थान के पोरखरण परमाणु स्थल पर 11 और 13 मई, 1998 को पांच परमाणु परीक्षण किये थे। इनमें 45 किलोटन का एक फ्यूज़न परमाणु उपकरण शामिल था। इसे आमतौर पर हाइड्रोजन बम के नाम से जाना जाता है। 11 मई को हुए परमाणु परीक्षण में 15 किलोटन का विखंडन (फिशन) उपकरण और 0.2 किलोटन का सहायक उपकरण शामिल था। 13 मई 1998 को, दो अतिरिक्त विखंडन उपकरणों को विस्फोटित किया गया, और प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने शीघ्र ही भारत को पूर्ण परमाणु राज्य घोषित करने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। इन परमाणु परीक्षण के बाद जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित प्रमुख देशों द्वारा भारत के खिलाफ विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध लगाये गए।
इन परीक्षणों को कई नाम सौंपा गया था, मूल रूप से इन्हें “ऑपरेशन शक्ति -98” कहा जाता था, और पांच परमाणु बमों (शक्ति- I) को शक्ति- V के नाम से भी जाना जाने लगा था। हाल ही में, पूरे ऑपरेशन को पोखरण II नाम दिया गया | और 1974 को “पोखरण- I”को नाम दिया गया।
भारत की परमाणु बम परियोजना
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही भारत की ओर से शुरू किया गया। 1944 में भारत ने अपना परमाणु बम परियोजना आरंभ किया | जब परमाणु भौतिक विज्ञानी होमी भाभा ने भारतीय कांग्रेस को परमाणु ऊर्जा के प्रयास के लिए राजी करना शुरू किया- एक साल बाद उन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) की स्थापना की।
1950 के दशक में, BARC में प्रारंभिक अध्ययन किए गए और प्लूटोनियम और अन्य बमो के उत्पादन की योजना बनाई गई। 1962 में, भारत और चीन विवादित उत्तरी मोर्चे पर लगे रहे, और 1964 में चीनी परमाणु परीक्षण से और अधिक भयभीत थे। परमाणु कार्यक्रम के सैन्यीकरण की दिशा उस समय धीमी हो गई जब विक्रम साराभाई इसके प्रमुख बन गए और 1965 में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इसमें कम रुचि दिखाई तो परमाणु योजना का सैन्यकरण धीमा हो गया।
1966 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद, परमाणु कार्यक्रम को संघटित किया गया जब राजा रमन्ना (भौतिक वैज्ञानिक) प्रयासों में शामिल हुए। चीन के दूसरे परमाणु परीक्षण करने के कारण अंत में 1967 में परमाणु हथियारों के निर्माण की ओर भारत को निर्णय लेना पड़ा और 1974 में अपना पहला परमाणु परीक्षण, मुस्कुराते बुद्ध (Smiling Buddha) आयोजित किया।
मुस्कुराते बुद्ध (Smiling Buddha) के बाद
1980 में आम चुनाव में , इंदिरा गांधी की वापसी के बाद परमाणु कार्यक्रम की गतिशीलता में तेजी आ गई। सरकार की ओर से अन्य कोई परमाणु परीक्षण करने से इनकार किया जाता रहा पर जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देखा कि पाकिस्तान ने अपने परमाणु कार्य को जारी रखा है तो परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाना जारी रखा गया। हाइड्रोजन बम की दिशा में शुरूआत कार्य के साथ ही मिसाइल कार्यक्रम का भी शुभारंभ दिवंगत राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के अंतर्गत शुरू हुआ, जो तब एक एयरोस्पेस इंजीनियर थे।
परीक्षण के लिए तैयारी
पाकिस्तान की हथियार परीक्षण प्रयोगशालाओं के विपरीत, भारत पोखरण में अपनी गतिविधि को छिपा सकने में असमर्थ था, पाकिस्तान में ऊंची पहाड़ो के विपरीत भारत में केवल झाड़ियाँ ही थीं और राजस्थान के रेगिस्तान में रेत के टीले जांच कर रहे उपग्रहों से ज्यादा कवर प्रदान नहीं कर सकते थे।
अमेरिकी CIA तथा अमेरिकी जासूसी उपग्रहों के प्रति भारतीय खुफिया एजेन्सी जागरूक थी और अमेरिकी सीआईए 1985 के बाद से ही भारतीय टेस्ट की तैयारियों का पता लगाने की कोशिश कर रही थी। इसलिए, परीक्षण को भारत में पूर्ण गोपनीय रखा गया ताकि अन्य देशों द्वारा पता लगाने की संभावना से बचा जा सके।
परियोजना के मुख्य समन्वयक
- डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम (जो बाद में भारत के राष्ट्रपति), प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार और डीआरडीओ के प्रमुख।
- डॉ आर चिदंबरम, परमाणु ऊर्जा आयोग और परमाणु ऊर्जा विभाग के अध्यक्ष।
- रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ)
- डॉ लालकृष्ण संथानम; निदेशक
- अन्वेषण और अनुसंधान के लिए परमाणु खनिज निदेशालय
- डॉ जी आर दीक्षितुलू;
- भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी)
डॉ अनिल काकोडकर, (निदेशक), डॉ सतिंदर कुमार सिक्का, डा एम एस रामकुमार, डॉ डी.डी. सूद, डॉ एस के गुप्ता, डॉ जी गोविन्दराज,
परीक्षण पर प्रतिक्रियाएं
- परीक्षण की सफलता पर भारतीय जनता ने भरपूर प्रसन्नता जताई लेकिन दुनिया के दूसरे मुल्कों में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई।
- एकमात्र इजरायल ही ऐसा देश था, जिसने भारत के इस परीक्षण का समर्थन किया।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं
- संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक सख्त बयान जारी कर भारत की निंदा और वादा किया था कि प्रतिबंधों को भी लगाया जायेगा।
- कनाडा ने भारत के कार्य पर सख्त आलोचना की।
- भारत पर जापान द्वारा भी प्रतिबन्ध लगाए गए और जापान ने भारत पर मानवीय सहायता के लिए छोड़कर सभी नए ऋण और अनुदानों को रोक दिया।
- कुछ अन्य देशों ने भी भारत पर प्रतिबंध लगा दिए, लेकिन ब्रिटेन, फ्रांस, रूस ने भारत की निंदा से परहेज किया।
- चीन– 12 मई को “चीनी सरकार गंभीरता से भारत द्वारा किए गए परमाणु परीक्षण के पर चिंता जताते हुए कहा कि परीक्षण “वर्तमान अंतरराष्ट्रीय प्रवृत्ति के लिए और दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता के लिए अनुकूल नहीं हैं।
- पाकिस्तान– परीक्षण पर सबसे प्रबल और कड़ी प्रतिक्रिया भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान ने की थी। 13 मई 1998 को, पाकिस्तान ने फूट-फूट कर परीक्षण की निंदा की, पाकिस्तान में परीक्षण के खिलाफ बहुत गुस्सा था। पाकिस्तान ने दक्षिण एशियाई क्षेत्र में परमाणु हथियारों की होड़ को भड़काने के लिए भारत को दोष दिया।
संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध
परीक्षण के तुरंत बाद ही विदेशो से प्रतिक्रियाए शुरु हो गयी। 6 जून को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के संकल्प 1172 द्वारा परमाणु परीक्षण की निंदा की गयी। चीन ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भारत पर परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर और परमाणु शस्त्रागार को समाप्त करने के लिए दबाव डाला। भारत परमाणु हथियार रखने वाले देशों के समूह में शामिल हुआ|
भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर न्यूनतम रहा था। अधिकांश राष्ट्रों ने निर्यात और आयात के सकल घरेलू उत्पाद पर भारत के खिलाफ प्रतिबंध नहीं लगाया। अमेरिका द्वारा लगाए गए महत्वपूर्ण प्रतिबंध कुछ समय बाद हटा लिया गया। अधिकांश प्रतिबंधों पांच साल के भीतर हटा लिए गये।