नई दिल्ली । भारत ने बीते साल पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया था तब से पाकिस्तान बैचेन है और मुस्लिम देशों के संगठन ओआईसी से विदेश मंत्रियों की बैठक की मांग कर रहा था। ओआईसी ने पाकिस्तान की एक नहीं सुनी। पाकिस्तान इससे इतना खीझ गया कि विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने इसी साल अगस्त में कह दिया कि अगर सऊदी अरब उनकी बात नहीं सुनेगा तो ओआईसी से अलग कश्मीर का मुद्दा उठाएगा और बाकी मुस्लिम देशों को एकजुट करेगा। सऊदी को पाकिस्तानी विदेश मंत्री का बयान बहुत बुरा लगा और उसने पाकिस्तान से कर्ज लौटाने की मांग शुरू कर दी। पाकिस्तान को बाद में लगा कि उसने सऊदी के खिलाफ बोलकर गलती कर दी और बाद में मनाने की कोशिश करने लगा। लेकिन तब तक मामला हाथ से निकल चुका था।
ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन यानी ओआईसी के विदेश मंत्रियों की 47वीं सीएफएम (काउंसिल ऑफ फॉरन मिनिस्टर्स) नाइजर की राजधानी नियामे में 27-28 नवंबर को आयोजित हुई। इसका आयोजन भी उस कॉन्फ्रेंस सेंटर में हुआ जिसका नाम महात्मा गांधी अंतराराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस सेंटर है और इसे बनाया भी भारत ने ही है। कश्मीर के विशेष दर्जा खत्म होने के बाद यह पहली बैठक थी और पाकिस्तान को लग रहा था कि इसमें भारत को कश्मीर के मुद्दे पर खूब खरी-खोटी सुनाई जाएगी, पर ऐसा नहीं हुआ। नियामे डेक्लेरेशन में इस बार कश्मीर का जिक्र किया गया और रस्मअदायगी के तौर पर कहा कि ओआईसी कश्मीर विवाद का यूएएनएससी के प्रस्ताव के अनुसार शांतिपूर्ण समाधान चाहता है।
पाकिस्तान ने पूरी कोशिश की थी कि इस बार सीएफएम में कश्मीर एक अलग एजेंडा के रूप में शामिल हो लेकिन नहीं हुआ। यहां तक कि कश्मीर को एजेंडा के तौर पर शामिल ही नहीं किया गया। लेकिन पाकिस्तान इतने भर से खुश है और नियामे डेक्लेरशन में कश्मीर के जिक्र भर को अपनी जीत के तौर पर देख रहा है।
पिछले साल मार्च महीने में अबूधाबी में यह बैठक हुई थी। इस बैठक में भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को भी यूएई ने बुलाया था। पाकिस्तान ने सुषमा स्वराज के बुलाए जाने का विरोध किया था और उसने उद्घाटन समारोह का बहिष्कार किया था। भारत के लिहाज से ये बैठक बेहद ऐतिहासिक और पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश देने वाली थी।
ओआईसी के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद आने वाले प्रस्ताव में कश्मीर का जिक्र कोई हैरान करने वाला नहीं है। इसे पहले भी जिक्र होता रहा है। इस बार के नियामे डेक्लरेशन के पैराग्राफ आठ में कहा गया है कि ओआईसी जम्मू-कश्मीर विवाद का समाधान यूएन सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के हिसाब से शांतिपूर्ण चाहता है और उसका यही रुख हमेशा से रहा है।
भारत में पाकिस्तान के राजदूत रहे अब्दुल बासित ने ट्विटर पर नियामे डेक्लरेशन को लेकर अपनी राय रखी है। बासित ने कहा है, ‘पांच अगस्त के बाद ओआईसी के विदेश मंत्रियों की यह पहली बैठक थी और हमें उम्मीद थी कि भारत को लेकर कुछ कड़ा बयान जारी किया जाएगा। हमें लगा था कि भारत के फैसले की निंदा की जाएगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। इस डेक्यरेशन में पाकिस्तान के लिए बहुत खुश होने वाली बात नहीं है।’
उन्होंने कहा, ‘जिस तरह से इस डेक्लरेशन में फिलीस्तीन, अजरबैजान और आतंकवाद को लेकर जिक्र हुआ है, वैसा कश्मीर का नहीं है। पिछले साल की तुलना में इस बात से खुश हो सकते हैं कि चलो इस बार कम से कम जिक्र तो हुआ। पांच अगस्त को भारत ने जो किया, उसकी निंदा होनी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। नाइजर के भारत के साथ अच्छे ताल्लुकात हैं और जिस कन्वेंशन सेंटर में यह कॉन्फ्रेंस हुई है, वो भारत की मदद से ही बना है।’ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान खुद कई बार ये बात स्वीकार कर चुके हैं कि भारत से सऊदी-यूएई के आर्थिक हित जुड़े हुए हैं और ऐसे में पाकिस्तान के लिए कश्मीर पर समर्थन पाना मुश्किल हो गया है।

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