नई दिल्ली। कई बार जब हम पेचीदा मसलों पर निर्णय लेते हैं, तो बहुत सोच-विचार के बाद भी कई बार गलतियां हो जाती हैं। इनमें से कुछ गलतियां ऐसी होती हैं जो हमें भविष्य में बहुत सताती हैं। इतिहास की वे गलतियां याद आते ही क्षोभ पैदा करती हैं। करगिल युद्ध के वक्त भारतीय सेना के प्रमुख रहे जनरल वीपी मलिक को भी यह बात आज भी सालती है कि उन्हें पाकिस्तानी क्षेत्र पर कब्जे की अनुमति नहीं मिली।
उन्होंने बताया 22 साल पहले सन 1999 की गर्मियों में पाकिस्तान के साथ छिड़े सैन्य संघर्ष ने युद्ध के नियमों और पाकिस्तान के साथ हमारे रिश्तों को बदलकर रख दिया। जनरल मलिक ने बताया कि करगिल युद्ध ने भारतीय सेना को यह सीख दी कि अचानक गले पड़ गई किसी समस्या को दमदार सैन्य और कूटनीतिक विजय में कैसे तब्दील किया जा सकता है। उन्होंने कहा चुपके से चोटियों पर आ बैठे पाकिस्तानी सेना को मार भगाने के लिए भारत ने ऑपरेशन विजय छेड़ा जो यह बहुत राजनीतिक, सैन्य और कूटनीतिक पहलों का शानदार मिश्रण था।
इसके सामने पाकिस्तान न केवल अपने मकसद में नाकाम रहा बल्कि उसे राजनीतिक और सैन्य मोर्चे पर बहुत ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा। भारतीय सेना को बहुत कमजोर खुफिया जानकारी और अपर्याप्त निगरानी के कारण संगठित होने और पाकिस्तानी सेना पर काउंटर ऐक्शन लेने में थोड़ी देर हुई, लेकिन रणभूमि में सैन्य सफलता और एक सफल राजनीतिक-सैन्य रणनीति के कारण भारत अपने राजनीतिक लक्ष्य को पाने में कामयाब रहा। करगिल युद्ध ने अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की एक ऐसे जिम्मेदार और लोकतांत्रिक राष्ट्र की छवि मजबूत की जो अपने क्षेत्रीय अखंडता की सुरक्षा करने को प्रतिबद्ध है।
जनरल मलिक ने कहा कि करगिल युद्ध से स्पष्ट हो गया कि परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र होने के नाते भारत के साथ पूर्ण युद्ध तो नहीं, लेकिन सीमा विवाद के कारण सीमित पारंपरिक युद्ध जरूर छिड़ सकते हैं। इस युद्ध ने हाइयर डिफेंस कंट्रोल ऑर्गेनाइजेश (एचडीसीओ), खुफिया और निगरानी व्यस्था के साथ-साथ हथियारों और औजारों के मोर्चे पर हमारी कमजोरियों को भी उजागर किया। करगिल युद्ध की वजह से पाकिस्तान के प्रति भारत के नजरिए में क्या बदलाव आया? जनरल मलिक ने कहा इसके बाद भारत में पाकिस्तान के प्रति विश्वास का स्तर बिल्कुल निचले स्तर पर चला गया। भारत यह समझ गया कि पाकिस्तान कभी भी, किसी भी समझौते को आसानी से तोड़ सकता है जैसा कि उसने कारगिल युद्ध के सिर्फ दो माह पहले साइन किए गए लाहौर घोषणापत्र के साथ किया।
पाकिस्तान की इस हरकत ने प्रधानमंत्री वाजपेयी और उनकी कैबिनेट को तगड़ झटका दिया जो आसानी से यह मान नहीं रहे थे कि भारतीय सीमा में घुसपैठ करने वाले आतंकी नहीं बल्कि पाकिस्तानी सेना के जवान थे। वाजपेयी ने नवाज शरीफ से कहा था आपने पीठ में छुरा घोंपा है। युद्ध की स्थितियों को लेकर जनर मलिक कहते हैं कि हमारे सामने बिल्कुल चौंकाने वाली परिस्थिति थी। खुफिया और निगरानी के मोर्चे पर भी हमें कुछ हासिल नहीं हो रहा था। ऐसे में सरकार भी पूरी तरह उलझन में थी कि आखिर घुसपैठिये आतंकवादी हैं या पाकिस्तानी सैनिक। अग्रिम मोर्चे पर तैनात हमारे सैनिक भी यह पता करने में नाकाम रहे कि पाकिस्तानी घुसपैठिए कहां-कहां जमे हैं। इसलिए, ऐक्शन में आने से पहले उपयुक्त सूचना पाकर हालात का सही जायजा लेना जरूरी था। जब भारतीय सशस्त्र बलों को पूरा भरोसा हो गया कि करगिल में सफलता मिलेगी, तब उन्हें युद्धविराम से पहले नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पार कुछ पाकिस्तानी इलाकों को कब्जे में लेने की अनुमति दी जानी चाहिए थी।

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