उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को केन्द्र और जम्मू कश्मीर प्रशासन से कहा कि वे अगले सप्ताह बतायें कि क्या पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को रिहा किया जा रहा है। संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान खत्म करने के सरकार के पिछले साल अगस्त के फैसले के बाद से ही उमर अब्दुल्ला हिरासत में हैं।
न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने केन्द्र की ओर से पेश अधिवक्ता से कहा कि अगर अब्दुल्ला को शीघ्र रिहा नहीं किया गया तो वह इस नजरबंदी के खिलाफ उनकी बहन सारा अब्दुल्ला पायलट की बंदीप्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करेगी। पीठ ने कहा, ‘‘यदि आप उन्हें रिहा कर रहे हैं तो जल्द कीजिये अन्यथा हम इस मामले की गुणदोष के आधार पर सुनवाई करेंगे।’’ पीठ ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब केनद्र और जम्मू कश्मीर प्रशासन के अधिवक्ता ने सूचित किया कि इस मामले में पेश हो रहे सालिसीटर जनरल तुषार मेहता इस समय दूसरे न्यायालय में बहस कर रहे हैं। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ से अनुरोध किया कि इस मामले की सुनवाई के लिये कोई नजदीक की तारीख निर्धारित की जाये।
इस पर पीठ ने कहा कि मौजूदा व्यवस्था की वजह से इस समय शीर्ष अदालत में सिर्फ छह पीठ काम कर रही हैं और उसे नहीं मालूम कब अगली बारी आयेगी। पीठ ने कहा, ‘‘संभवत: अगले सप्ताह हम बैठ रहे हैं और इस मामले को उस समय लिया जा सकता है।’’ सारा अब्दुल्ला पायलट ने इस याचिका में जम्मू कश्मीर लोक सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत अब्दुल्ला को नजरबंद करने के आदेश को चुनौती दी है। उन्होंने कहा कि वह अपने भाई के सत्यापित फेसबुक एकाउन्ट की छानबीन करने पर यह देखकर हतप्रभ रह गईं कि जिन सोशल मीडिया पोस्ट को उनका (उमर का) बताया गया है और दुर्भावनापूर्ण तरीके से जिसका उनके खिलाफ इस्तेमाल किया गया है, वह उनका नहीं है।
अपनी याचिका पर जम्मू कश्मीर प्रशासन के जवाब के प्रत्युत्तर में सारा ने कहा, ‘‘इस बात से इंकार किया जाता है कि हिरासत में बंद व्यक्ति की महज मौजूदगी और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने भर से सार्वजनिक व्यवस्था कायम रखने को आसन्न खतरा है। पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर राज्य में लोगों की जान जाने के बारे में तथ्यात्मक आंकड़े मौजूदा विवाद के उद्देश्यों के लिये पूरी तरह अप्रासंगिक हैं।’’ सारा अब्दुल्ला ने दावा किया है कि अब्दुल्ला के आधिकारिक फेसबुक एकाउन्ट से कोई पोस्ट नहीं किया गया है, जैसा जिन सामग्रियों पर भरोसा किया गया है उसमें दावा गया है। उन्होंने अपने प्रत्युत्तर में कहा, ‘‘दरअसल मौजूदा मामले के तथ्य और परिस्थितियां जिसमें हिरासत में बंद व्यक्ति के खिलाफ इस्तेमाल की गई एकमात्र सामग्री उनके सोशल मीडिया पोस्ट हैं। जिन पोस्ट पर भरोसा किया गया है उनका अस्तित्व ही नहीं है और गलत और दुर्भावनापूर्ण तरीके से इसे उनका बताया गया है जो पूरी तरह से उनके हिरासत के आदेश को प्रभावित करता है और यह कानूनन टिकने लायक नहीं और पूरी तरह असंवैधानिक है।’’