नई दिल्ली। पंजाब में कांग्रेस का संकट बढ़ता जा रहा है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के विरोध के बावजूद नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपकर पार्टी ने नया नेतृत्व तैयार करने की कोशिश की, पर यह तजुर्बा परेशानी का सबब बनता जा रहा है और इस लड़ाई में पार्टी खुद को फंसा हुआ महसूस करने लगी है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि कैप्टन और सिद्धू की लड़ाई फिल्हाल खत्म होने की उम्मीद नहीं है। क्योंकि, दोनों नेताओं में असली झगड़ा टिकट बंटवारे को लेकर शुरु होगा। दोनों अपने-अपने समर्थकों को ज्यादा से ज्यादा टिकट दिलाने की कोशिश करेंगे, ताकि चुनाव में जीत के बाद वह विधायकों की संख्या के बल पर मोलभाव कर सके। पंजाब कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने कहा कि इस लड़ाई से पार्टी कार्यकर्ता मायूस हैं। क्योंकि, पिछले तीन-चार माह से पार्टी चुनाव के लिए खुद को तैयार करने के बजाए अंदरूनी कलह से जूझ रही है। किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है, जब मिलकर मुकाबला करने का वक्त है, तो हम आपस में झगड़ रहे हैं। किसान आंदोलन, भाजपा और अकाली दल में गठबंधन खत्म होना और कैप्टन सरकार के कामकाज की बुनियाद पर पार्टी को पंजाब में जीत का भरोसा था। पर पिछले कुछ माह में जिस तरह अंदरूनी कलह उभर कर सामने आई, उससे पार्टी का भरोसा डगमगाया है। क्योंकि, यह पार्टी के चुनाव फायदे से ज्यादा अहं की लड़ाई बनती जा रही है। वरिष्ठ नेता ने कहा कि कांग्रेस नेतृत्व को कैप्टन और सिद्धू को बयानबाजी बंद कर तालमेल के साथ काम करने की हिदायत देनी चाहिए। इसके साथ इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि दोनों की लड़ाई में किसी विधायक या नेता का नुकसान न हो। क्योंकि, कैप्टन पूरी कोशिश करेंगे कि उनके खिलाफ आवाज उठाने वाले या सिद्धू समर्थक विधायकों को टिकट न मिले। सिद्धू कैप्टन समर्थकों के साथ ऐसा करेंगे। पार्टी नेतृत्व को इस बार सख्ती के साथ नवजोत सिंह सिद्धू पर लगाम कसनी चाहिए। क्योंकि, ताजा विवाद उनके सलाहकारों की वजह से पैदा हुआ है। कांग्रेस महासचिव और प्रदेश प्रभारी हरीश रावत ने संकेत दिए हैं कि सिद्धू के सलाहकारों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, पर पार्टी को इस बारे में जल्द फैसला लेना चाहिए।

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