नई दिल्ली। क्या कोविड-19 के खिलाफ विकसित टीके का एक डोज कोरोना के संक्रमण से बचाव के लिए पर्याप्त है? अगर नहीं तब क्या अभी मौजूदा वैक्सीन का एक डोज लेकर ज्यादा कारगर टीके का इंतजार करना ठीक रहेगा? यानी, कोरोना के खिलाफ पहली बार अभी मौजूद कोई टीका लगाने के बाद दूसरी बार भविष्य में आने वाला कोई ज्यादा प्रभावी टीका लगा लेना उचित होगा? पहली बार इन सवालों का जवाब सामने आया है। अमेरिका की नियामकीय संस्था खाद्य एवं औषधि प्रशासन यानी (एफडीए) ने साफ-सुथरे जवाब में दो टूक कहा कि नहीं। एफडीए ने कहा कि फाइजर-बायोएनटेक और मॉडर्ना वैक्सीन देश में लगाए जा रहे हैं। दोनों टीकों ने व्यस्कों में कोरोना से संक्रमण के खिलाफ करीब 95 प्रतिशत प्रतिरोधक क्षमता पैदा कर दी है। हम वैक्सीन डोज घटाने के लेकर हो रही चर्चाओं और खबरों से वाकिफ हैं। दो वैक्सीन डोज के बीच गैप बढ़ाने, डोज की मात्रा बदलने (आधा या पूरा डोज) या अलग-अलग वैक्सीन के डोज देने संबंधी चर्चाएं हो रही हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को कोविड-19 के खिलाफ सुरक्षित बनाया जा सके। ये सभी बिल्कुल तार्किक प्रश्न हैं जिन पर विचार होना चाहिए और क्लिनिकल ट्रायल से इनका जवाब ढूंढा जाना चाहिए। हालांकि, इस वक्त एफडीए की तरफ से निर्धारित डोज या दो डोज के बीच अंतराल के वक्त आदि में बदलाव करना सही नहीं होगा क्योंकि ऐसा करने के मौजूदा साक्ष्यों का ठोस आधार नहीं हैं।”
फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन के दो डोज के लिए 21 दिनों का अंतराल तय किया गया है, जबकि मॉडर्ना के लिए 28 दिनों का। सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में भी कोविड वैक्सीन पर यही नियम अपनाए जाएंगे। यहां अगले 9 दिनों में टीकाकरण शुरू हो सकता है। भारतीय आर्युविज्ञान अनुंसधान परिषद (आईसीएमआर) में वैज्ञानिक और अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान (एम्स) के पूर्व डॉ. एनके मेहरा ने कहा, आप वैक्सीन को मिक्स नहीं कर सकते और कोरोना के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता पैदा करने के लिए वैक्सीन का दूसरा डोज बहुत जरूरी है।उन्होंने कहा कि दो अलग-अलग वैक्सीन को मिलाने का क्या असर हो सकता है, इस पर रिसर्च नहीं हुआ है, इसलिए एक डोज किसी वैक्सीन का दूसरा डोज किसी दूसरे वैक्सीन का देने की सलाह नहीं दी जा सकती है।
भारत में कोवैक्सीन और ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी एवं एस्ट्रेजेनेका की ओर से विकसित कोवीशील्ड को सीमित आपातकालीन उपयोग की मंजूरी मिल गई है। भारत बायोटेक और आईसीएमआर की तरफ से विकसित कोवैक्सीन एंटीबॉडी बनाने में रोग प्रतिरोधक तंत्र को ताकत देने में मृत कोरोना का इस्तेमाल करता है। वहीं, कोवीशील्ड चिंपांजी एडीनोवायरस के कमोजर वर्जन के इस्तेमाल से कोरोना स्पाइक प्रोटीन के जीन को नष्ट कर देती है। कोरोना इंसानों की सेल में घुसने के लिए इसी स्पाइक प्रोटीन के जीन का ही इस्तेमाल करता है। एडीनोवायरस को मोडिफाइ कर दिया जाता है ताकि यह अपना दूसरा रूप नहीं बना सके लेकिन सेल्स स्पाइक प्रोटीन के जीन पहचान लें। इससे इम्यून सिस्टम प्रतिक्रिया करता है और कोविड के खिलाफ ऐंटीबॉडीज विकसित हो जाते हैं। दोनों वैक्सीन, कोवैक्सीन और कोवीशील्ड के दो-दो डोज दिए जाएंगे। फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन मेसेंजर आरएनए प्लैटफॉर्म पर विकसित की गई हैं इसलिए कोवैक्सीन और कोवीशील्ड से अलग हैं। पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट और दिल्ली में टीकाकारण अभियान के लिए नियुक्त मास्टर ट्रेनर डॉ.सुनीला गर्ग कहती हैं, फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन ज्यादा कारगर हैं लेकिन इन्हें क्रमशः-70 डिग्री सेल्सियस और -20 डिग्री सेल्सियस तापमान में स्टोर करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, भारत में वैक्सीन को इतने कम तापमान पर भंडारण की पर्याप्त क्षमता नहीं है। इनकी ढुलाई की व्यवस्था करना भी चुनौतीपूर्ण है। इसलिए मुझे नहीं लगता है कि फाइजर और मॉडर्ना वैक्सीन भारत में उपलब्ध हो सकती हैं।”
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