चीन के वुहान शहर से कोरोना संक्रमण पूरी दुनिया में फैला था लेकिन किसी को उम्मीद नही थी कि आने वाले समय में कोरोना इतना घातक हो जाएगा। बता दें कि, पांच माह पहले कोरोना वायरस की पहचान हुई और तभी से वैक्सीन बनाने की रेस शुरू हुई। भारत समेत कई देशों में प्रायोगिक वैक्सीन के पहले चरण का ह्यूमन ट्रायल शुरू हो चुका है। छह वैक्सीन ट्रायल के विभिन्न चरण में हैं। वैक्सीन की अरबों डोज की जरूरत होगी, ऐसे में इसे हर हाल में गुणवत्तापूर्ण होना चाहिए।
बता दें कि, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का मानना है कि सबसे प्रभावकारी वैक्सीन की पहचान बहुत जरूरी है, ताकि पूरे विश्व को फायदा हो सके। इसके लिए तीसरे चरण तक के ह्यूमन ट्रायल का डाटा शेयर किया जाए, ताकि पता चल सके कि सबसे असरदार वैक्सीन कौन सी है साथ ही इन्हें दुनियाभर में पहुंचाने का मॉडल क्या होगा, क्योंकि तमाम सरकारी शोध केंद्रों के साथ प्राइवेट लैब और निवेशकों का भी काफी पैसा वैक्सीन विकसित करने में लगा है। एक अनुमान के मुताबिक, ट्रायल से लेकर दुनिया में पहुंचाने के लिए ही दो अरब डॉलर (1500 करोड़ रुपये) की जरूरत होगी।
वायरस के प्रकोप के बीच ह्यूमन ट्रायल के लिए हजारों लोगों की जरूरत पड़ेगी। प्रायोगिक वैक्सीन की डोज देकर देखा जाएगा कि उनमें कैसे और किस तरह की इम्युनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) कोरोना वायरस के प्रति विकसित होगी। यह अपने आप में बड़ा खतरा है। नेचर के अनुसार दुनिया में पहली बार होगा कि हजारों लोगों पर प्रायोगिक वैक्सीन का प्रयोग किया जाएगा। दुनिया में 35 लाख से भी ज्यादा लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं, इसके बावजूद बहुत कम लोगों में कोरोना वायरस के प्रति इम्युनिटी विकसित हुई है, उसकी क्वालिटी का स्तर भी अभी स्पष्ट नहीं है।