मदरलैंड संवाददाता बेतिया

बिहार शिक्षक संघर्ष समन्वय समिति के सदस्य-सह-अनुमंडल सचिव (शिक्षक संघ,बिहार) ने नियोजित शिक्षकों के वेतन को लेकर सरकार के ढुलमुल रवैया पर हमला बोला है ।श्री सिंह ने कहा कि सूबे के साढ़े चार लाख नियोजित शिक्षक सरकार के ढुलमुल रवैया के कारण भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं । आज पूरे सूबे में कोरोना वायरस से एक व्यक्ति की मौत हुई है जबकि राज्य सरकार की हठधर्मिता एवं ढुलमुल रवैया के कारण 43 नियोजित शिक्षकों की मृत्यु अब तक हो गई है।
श्री सिंह ने शिक्षा मंत्री के उस ब्यान की निंदा की जिसमें उन्होंने कहा है कि समान स्थिति आने पर नियोजित शिक्षकों से वार्ता होगी अभी नियोजित शिक्षक विद्यालय में योगदान करें । सभी विद्यालय तो अभी बंद है फिर योगदान कहां करें और बिना वार्ता के योगदान कैसे करें ? हड़ताल में रहते हुए सभी जियोजित शिक्षक कोरोना के जंग में सरकार के साथ हर समय खड़ा है एवं इसको हराने को लेकर के बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं । अगर सरकार की मंशा सही होती तो इस परिस्तिथि में वे नियोजित शिक्षकों से अभिलंब वार्ता करती और शिक्षकों की मांगों को गंभीरता से लेती। भले ही सामान्य स्थिति राज्य के होने के बाद ही इसे लागू करती । सरकार वार्ता कर कम-से-कम अभी सिर्फ घोषणा तो कर सकती है न ?
जहां एक और शिक्षक अपनी जान की बाजी लगा कर के कोरोनटाईन सेंटरों पर जो विभिन्न विद्यालयों में बनाये गए हैं, बड़ी ही मुस्तैदी के साथ कोरोना जैसे महामारी से लड़ने में सरकार का साथ दे रहें है । वैसे अभी लॉक डाउन में सभी विद्यालय बंद है इसलिए नियोजित शिक्षक लॉक डाउन का पालन करते हुए आवश्यकतानुसार जरूरतमंदों की मदद करने में सरकार का हर बिंदु पर सरकार से कदम-से-कदम मिला कर कोरोना को हराने की हर संभव कोशिश कर रहीं हैं ।एक ओर केंद्र सरकार के आदेशानुसार किसी भी कर्मी का वेतन या उस पर करवाई नहीं करनी है के लिए आदेश जारी किया गया है, वही बिहार सरकार ने नियोजित शिक्षकों का वेतन भी बंद करने का आदेश दिया है ,जिससे सभी शिक्षक भुखमरी के कगार पर आ गए हैं ।
अपनी मांगों को रखना लोकतंत्र में सबका अधिकार है । बिहार सरकार अपने शक्ति के बल पर इस मांगों को दबाना चाहती हैं एवं शिक्षकों पर दबाव बनाना चाह रही है जो लोकतंत्र का हनन है । इसका दूरगामी परिणाम कहीं से भी अच्छा नहीं दिख रहा हैं । एक बार सरकार को इस पर सहानुभूति पूर्वक विचार अवश्य करनी चाहिए ।
अतः विकट परिस्थिति में बिहार सरकार अभिलंब नियोजित शिक्षकों के मांगों पर यथाशीघ्र ध्यान नहीं देती,अगर सरकार नियोजित शिक्षकों के साथ न्याय नहीं करती तो हमारे साथ-साथ हमारे परिवार के लोग कोरोना से तो नहीं बल्कि भूखे से जरूर मर जाएंगे ।

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