नई दिल्ली। दिल्ली की एक अदालत ने नाबालिगों के यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को बरी करते हुए कहा कि बच्चों को उनके अभिभावकों ने बहुत कुछ सिखा रखा था। इसके साथ ही, अदालत ने राज्य सरकार को, बरी किए गए व्यक्ति को एक लाख रुपए मुआवजा देने का भी निर्देश देते हुए कहा कि इस बात के पर्याप्त साक्ष्य हैं कि जातीय घृणा के कारण ही इस व्यक्ति को जानबूझकर फंसाया गया है। जिला एवं सत्र न्यायाधीश धर्मेश शर्मा ने कहा कि पर्याप्त सबूत इशारा करते हैं कि दलित समुदाय के आरोपी के प्रति बच्चों के अभिभावकों की प्रवृत्ति पक्षपातपूर्ण है। साफ लगता है कि उसे इस मामले में जानबूझकर फंसाया गया है। अदालत ने सात अगस्त को दिए फैसले में कहा कि आपराधिक न्याय प्रदाता प्रणाली का हमारा अनुभव है कि लोग अनगिनत कारणों से झूठे आरोप लगाते हैं। जिनमें से जातिगत घृणा भी एक प्रमुख कारण है, जैसा कि इस मामले में सबूतों के विश्लेषण से सामने आया है।
मामला सन 2015 में बच्चों के यौन अपराधों से संरक्षण (पोक्सो) कानून के तहत दर्ज करवाया गया था। आरोप था कि व्यक्ति ने अपने पड़ोसी की नाबालिग बेटियों का यौन उत्पीड़न किया। आरोपी तभी से जेल में बंद था। जिला न्यायाधीश ने कहा हमारे समाज में, अच्छाई और बुराई के बीच सतत संघर्ष चलता रहता है। हम ऐसे दौर में रह रहे हैं जहां पर समाज में नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है तथा कुछ भी संभव है। अदालत ने आरोपी को एक लाख रूपए की क्षतिपूर्ति दो माह के भीतर देने का राज्य सरकार को निर्देश दिया।

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