चंडीगढ़। पंजाब पुलिस के मुखिया रहे पूर्व डीजीपी सुमेध सिंह सैनी की गिरफ्तारी को लेकर अदालत में विजीलैंस ब्यूरो के अधिकारियों को हार का सामना करना पड़ा लिहाजा सैनी को घेरने के लिए उसने और अधिक तत्परता के साथ फाइलें खंगालने की कवायद शुरू कर दी हैं। भले ही बुधवार रात को सुमेध सिंह सैनी बीते वर्ष दर्ज हुए भ्रष्टाचार व धोखाधड़ी के एक मामले में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन अदालत की चौखट पर विजीलैंस ब्यूरो का कोई तर्क नहीं सुने जाने से विजीलैंस की सैनी को रिमांड पर लेने की चाहत धराशाई हो गई।
हालांकि विजीलैंस ब्यूरो व पंजाब पुलिस के अधिकारियों द्वारा सुमेध सिंह सैनी को अदालत के समक्ष पेश किए जाने से पहले उससे कई घंटे तक विभिन्न मामलों संबंधी पूछताछ की गई। विजीलैंस द्वारा सैनी की गिरफ्तारी का आधार वर्ल्ड वाइड इमिग्रेशन कंसलटैंसी सर्विसेज (डब्ल्यूडब्ल्यूआईसीएस) एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड द्वारा कुराली के नजदीक सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत के साथ राजस्व रिकॉर्ड में फेरबदल करके काटी गई दो कालोनियों के भ्रष्टाचार के साथ जोड़ कर बनाया गया था और उसी पैसे से चंडीगढ़ के सेक्टर-20 स्थित 3048 नंबर कोठी की खरीद को जोड़ा गया है। विजीलैंस द्वारा अब सुमेध सिंह सैनी के कार्यकाल के दौरान हुई पुलिस कांस्टेबल भर्ती की फाइलें भी खंगालनी शुरू कर दी गई हैं ताकि तथ्यात्मक सबूत मिलने पर उस संबंध में भी सैनी को घेरा जा सके।
सूत्रों के मुताबिक सैनी के डीजीपी कार्यकाल के दौरान हुई कांस्टेबल भर्ती में कई गड़बडिय़ों की चर्चाएं चली थीं। विजीलैंस द्वारा इन फाइलों की गहन जांच के लिए एआईजी स्तर के अधिकारी के नेतृत्व में टीम बनाई गई है। विजीलैंस के मुताबिक वर्ष-2013 में डब्ल्यूडब्ल्यूआईसीएस के डायरेक्टर दविंद्र सिंह संधू ने तत्कालीन स्थानीय निकाय विभाग के डिप्टी डायरेक्टर अशोक सिक्का, एसटीपी सागर भाटिया और अन्य के साथ मिलीभगत करके कृषि वाली जमीन और प्राकृतिक चौ को अवैध तरीके से रिहायशी इलाका दिखाकर, ग्रीन मीडोज-1 और ग्रीन मीडोज-2 नाम की रिहायशी कालोनियां काटी थीं। इस मामले में बीते वर्ष धारा 409, 420, 465, 467, 468, 471, 120-बी व भ्रष्टचार रोकथाम कानून के तहत मामला दर्ज किया था। विजीलैंस का कहना है कि जांच के दौरान यह तथ्य सामने आए कि दविंद्र सिंह संधू एक अन्य आरोपी लोक निर्माण विभाग के कार्यकारी इंजीनियर निमरतदीप सिंह का पुराना जानकार था और निमरतदीप सिंह की उच्च अधिकारियों के साथ काफी जान-पहचान का फायदा उठाकर ही उक्त सारा काम किया गया था, जिसके लिए निमरतदीप द्वारा दविंद्र सिंह संधू से करीब 6 करोड़ रुपए रिश्वत हासिल की गई थी। इसी पैसे से चंडीगढ़ के सेक्टर-20 स्थित कोठी खरीदी गई थी।

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