नई दिल्ली। नदी के माध्यम से कोरोना वायरस का संचरण चिंता की बात नहीं है। गंगा समेत कई नदियों में कोविड-19 के संदिग्ध शवों के बहने का मामला सामने आने के बाद बुधवार को यह बात विशेषज्ञों ने कही। आईआईटी कानपुर में प्रोफेसर सतीश तारे ने कहा कि गंगा या इसकी सहायक नदियों में शवों को प्रवाहित करने का मामला गंभीर है, खासकर ऐसे समय में जब देश कोरोना वायरस महामारी के संकट से जूझ रहा है। गंगा और यमुना कई गांवों में पेयजल का मुख्य स्रोत हैं।
इसके अलावा यह कई नदियों और जलाशयों के लिए जलस्रोत का काम करती है। बहरहाल, प्रोफेसर ने कहा कि शवों को नदियों में फेंकने का वायरस के संचरण पर ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला है। हां, शवों को नदियों में फेंकने से नदियां मुख्यत: प्रदूषित होती हैं। पानी में घुलने के बाद वायरस के मनुष्य में प्रवेश करने के अब तक कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं। उन्होंने कहा, अगर कोविड-19 के संदिग्ध रोगियों के शव बाहर भी निकाले जाते हैं तो काफी कुछ घुल चुका होता है (जल में प्रवाह के दौरान)। प्रभाव ज्यादा नहीं हो सकता है। पर्यावरण इंजीनियरिंग, जल गुणवत्ता और दूषित जल शोधन विषय पढ़ाने वाले तारे ने कहा, अगर यह जल जलापूर्ति के लिए भी जाता है तो शोधन के बाद, लिहाजा कोई समस्या नहीं है।
प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के. विजय राघवन का कहना है कि इस तरह के माध्यम से संचरण चिंता की बात नहीं है। उन्होंने कहा, मुख्य रूप से संचरण लोगों के बातचीत करने या जब दो लोग एक-दूसरे के नजदीक हों तब होता है। संक्रमित व्यक्ति के मुंह से पानी की छोटी बूंद किसी सतह पर गिरती है और दूसरा व्यक्ति इसके संपर्क में आता है तो यह जल के माध्यम से फैल सकता है।
बिहार सरकार ने बक्सर जिले में मंगलवार को गंगा नदी से 71 शव बाहर निकाले, जहां वे नदी में तैरते मिले थे। यूपी में भी कई शव निकाले गए। इसके बाद इस बात का संदेह उत्पन्न हो गया कि ये शव कोविड-19 मरीजों के हो सकते हैं। लिहाजा इनसे संक्रमण फैल सकता है।
संदीप सिंह/देवेंद्र/ईएमएस/नई दिल्ली/13/मई/2021

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