नई दिल्ली। देश के शोधकर्ताओं की पहुंच जल्द ही चार क्रायोजेनिक-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (क्रायो-ईएम) सुविधाओं तक होगी, जोकि नई और उभरती बीमारियों से निपटने के लिए संरचनात्मक जीव विज्ञान, एंजाइमोलॉजी और दवाओं की खोज के क्षेत्र में नेतृत्वकारी भूमिका का मार्ग प्रशस्त करेगी। क्रायो-ईएम ने हाल के दिनों में बड़े अणुओं (मैक्रोमोलेक्यूल्स) की संरचनात्मक जांच में क्रांति ला दी है। एक क्रांतिकारी तकनीक के तौर पर यह प्रगति संरचनात्मक जीवविज्ञानियों, रासायनिक जीवविज्ञानियों, और लिगैंड खोज, जिसने समकालीन एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी पर स्पष्ट बढ़त हासिल कर ली है, के लिए एक वरदान है। इन प्रगतियों को ध्यान में रखते हुए, क्रायो-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी तकनीक को किसी मिश्रण में जैव-अणुओं के उच्च-रिज़ॉल्यूशन संरचना निर्धारण के लिए नोबेल पुरस्कार (2017) के माध्यम से मान्यता दी गई थी। रिज़ॉल्यूशन के संदर्भ में इस क्रांति की वजह से जीका वायरस की सतह पर पाई जाने वाली प्रोटीन की आण्विक-स्तर की समझ विकसित हुई और इस प्रकार संरचना-आधारित दवा की खोज, मुश्किल से क्रिस्टलीय स्वरूप ग्रहण करने वाले झिल्लीदार प्रोटीन और अन्य जटिल बड़े अणुओं (मैक्रोमोलेक्यूलर) की संरचना की व्याख्या करने में सहायता मिली। विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी), जोकि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत एक संस्थान है, द्वारा समर्थित राष्ट्रीय सुविधाएं बड़े अणुओं (मैक्रोमोलेक्यूलर) की संरचनाओं और जटिलताओं का पता लगाने में मदद करेंगी और संरचनात्मक जीव विज्ञान, एंजाइमोलॉजी, लिगैंड/दवा की खोज के क्षेत्र में नेतृत्व स्थापित करने के उद्देश्य से भारत में क्रायो-ईएम अनुसंधान के लिए अनुसंधान संबंधी ज्ञान का आधार और कौशल विकसित करेंगी।

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