नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को केंद्र और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से उस याचिका पर जवाब मांगा है जिसमें गर्भवती महिलाओं और नवजात की माताओं के लिए उपस्थिति नियमों में ढील देने के लिए दिशा-निर्देश बनाने की मांग की गई है। यह याचिका एक अधिवक्ता ने दायर की है। मुख्य न्यायाधीश डी.एन.पटेल और न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर की पीठ ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिकता मंत्रालय तथा यूजीसी को नोटिस जारी कर इस याचिका पर उनका जवाब मांगा है।

अदालत ने मामले पर सुनवाई की अगली तारीख 28 मई तय की है। अदालत ने इससे पहले बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई), मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) तथा ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) से उनका रुख भी बताने को कहा है। याचिकाकर्ता अधिवक्ता कुश कालरा ने उच्च स्तरीय समिति बनाने का भी अनुरोध किया है जो उन महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा करे जो गर्भावस्था, प्रसव या नवजात की देखभाल जैसी स्थितियों के कारण कक्षाओं में नहीं आ सकती हैं या जिनकी उपस्थिति पूरी नहीं हो पाती है। याचिका में उन्होंने कहा कि इन कारणों से उपस्थिति पूरी नहीं हो पाने के कारण कई महिलाएं शैक्षणिक संस्थाओं को छोड़ देती हैं या फिर उन्हें सेमेस्टर परीक्षा में बैठने नहीं दिया जाता। इसमें कहा गया कि मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत जो लाभ कामकाजी महिलाओं को मिलते हैं वही फायदे शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ने वाली महिलाओं को भी मिलने चाहिए और ऐसा नहीं करना ‘भेदभाव’ करने जैसा है।

 

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