मदरलैंड सम्वादाता, भैरोगंज
इसमे कोई दो राय नही के लॉक डाउन और सोशल दूरी दोनों सख्त कदम हैं । जिसे वैश्विक महामारी कोविड-19 वायरस के खिलाफ लागू किया गया है । जिसे भारत सहित अनेक देशों ने अंगीकृत किया है। क्योकि दुनिया को इसके अलावा इस आसन्न संकट से राहत पाने के लिए अभी तक कोई ठोस विकल्प उपलब्ध नहीं है। हालांकि कई तरह के दावों की चर्चा सोशल प्लेटफार्म से लेकर तमाम मीडिया चैनलों पर अक्सर हो रहे हैं। फिर भी उनकी विश्वसनीयता अभी सवालों के घेरे में है। कुल मिलाकर सोशल दूरी तथा लॉक डाउन से बेहतर विकल्प अभी कोई नहीं है।
इधर एक चर्चा शरीर के ‘इम्यून सिस्टम’ यांनी रोग प्रतिरोधक क्षमता के विकास को लेकर भी लोगों के बीच देखी जा रही है। ये आम चर्चा लोगों में धारणा की शक्ल ले रही है । माना जा रहा है के कोरोना की जद में आने वाले अधिकतर कमजोर इम्यून सिस्टम यानी कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले व्यक्ति हो रहे है। फिलहाल इस धारणा के पीछे कितनी सच्चाई है,ये बाते तो विशेषज्ञों को ही मालूम होगी। वैसे भी मजबूत इम्यून सिस्टम का शरीर मे होना बुरा नहीं है। क्योंकि तमाम तरह के रोगों से लड़ने और शरीर को स्वास्थ्य रखने के लिए सबल रोग प्रतिरोधक क्षमता आवश्यक है।परन्तु कोरोना के विरुद्ध शरीर के इस प्रणाली का प्रभाव कितना है ,यह एक्सपर्ट ही बता सकते है।खैर यहाँ चर्चा का विषय कुछ और है।
और वह यह है के संकट की इस घड़ी में ग्रामीण परिवेश की इस धारणा का भरपूर लाभ क्षेत्र में घूम रहे झोला छाप डॉक्टर उठा रहे हैं। सूत्रों की मानें तो आम बीमारी के ईलाज करने से लेकर इम्यून सिस्टम बढ़ाने की दवाएँ ये लोगों को दे रहे है।इनमें कथित तौर पर आयुर्वेदिक फंकी,चूर्ण या चाय से लेकर एलोपैथ जैसी बिना रैपर वाली गोलियां शामिल हैं। इन्हें झोला लटकाए गाँवों में डोर टू डोर अक्सर घूमते देखा जाता है । बताया तो यह जा रहा है के क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में स्थित तमाम चौक-चौराहों पर इनकी छोटी छोटी ढकीछुपी क्लिनिके भी मौजूद हैं। जहाँ मरीजों का ईलाज किया जाता है। बहरहाल, झोला छाप डाक्टरों की पूछ इसलिए बढ़ गयी है। क्योंकि कोविड-19 के मद्देनजर विभागीय आदेशनुसार भैरोगंज स्थित सरकारी स्वास्थ्य केंद्र बंद कर दिया गया है तथा सारे मेडिकल स्टॉफ की ड्यूटी अनुमण्डल अस्पताल बगहा में ली जा रही है। इस सूरत में सामान्य लोगों के सामने झोला छाप डॉक्टरों के चंगुल में फंसने के सिवा कोई अन्य चारा नही है। फलस्वरूप इन तथाकथित डॉक्टरों की चांदी कट रही है।
लेकिन इसका दूसरा पहलू और अधिक भयानक भी साबित हो सकता है। ये नीम हकीम कोरोना संक्रमण के संभावित कारक कभी भी बन सकते है। समय रहते स्वास्थ्य विभाग को चेतने की आवश्यकता है।