चाहबहार। चीन के साथ मिलकर पाकिस्तान ने जो साजिश रची, वह सफल होती दिख रही है। चीन ने ईरान के साथ 400 अरब डॉलर का सौदा कर अपनी चाल चल दी है। ईरान इसमें फंसकर भारत के साथ दोस्‍ती को दांव पर लगाने को तैयार दिख रहा है। ऐसा होता है तो पाकिस्‍तान के के लिए खुश होने की बात होगी। चीन जाने-अनजाने में पाकिस्‍तान का ‘गॉडफादर’ बन ही चुका है। ईरान से चीन की करीबी से पाकिस्‍तान के भी उससे रिश्‍ते मजबूत होंगे। अभी धार्मिक आधार पर ईरान और पाकिस्‍तान के रिश्‍ते उतने सहज नहीं हैं। चीन ने ईरान संग दोस्‍ती का हाथ बढ़ाकर पश्चिम एशिया में वर्चस्‍व स्‍थापित करने का जो पासा फेंका है और उससे भारत को जो शुरुआती झटका लगा है, उससे पाकिस्‍तान का गदगद होना साफ समझा जा सकता है।
चीन की नजर अफगानिस्‍तान की खदानों पर हैं। पाकिस्‍तान के बाद अब अगर ईरान में उसकी पैठ बन गई तो अफगानिस्‍तान और भारत के रिश्‍ते खतरे में आ जाएंगे। सेंट्रल एशिया के देशों पर रूस का प्रभाव रहा है और अगर वे चीन की धुन पर नाचने लगे तो ड्रैगन को सुपरपावर बनते देर नहीं लगेगी। साउथ एशिया के साथ चीन का ट्रेड पिछले दो दशक में 23 गुना तक बढ़ गया है। म्‍यांमार, बांग्‍लादेश, नेपाल तक चीन की सड़कें हैं। श्रीलंका, मालदीव में उसके ठिकाने हैं। एक तरफ जब पूर्वी लद्दाख में सीमा पर तनाव घट रहा है, भारत को चीन की इस सॉफ्ट-एग्रेसिव पॉलिसी से सावधान रहना होगा।
ईरान पर चीन का कंट्रोल जितना बढ़ेगा, भारत के लिए उतना बुरा है। पाकिस्‍तान से दूरी बनाने के लिए हमने अफगानिस्‍तान में जरंज और दिलाराम के बीच 200 किलोमीटर लंबी सड़क बनाई। इससे हम अफगान के साथ-साथ सेंट्रल एशिया के बाजारों तक पहुंच बनाते हैं। इस रोड को ईरान और सेंट्रल एशिया के बाकी देशों से जोड़ने के लिए भारत और ईरान के बीच दो समझौते हुए थे। उसमें पहला चाहबहार-जहेदान रोड था और दूसरा चाहबहार पोर्ट। ये सारे समझौते 2016 में हुए थे मगर अब तक लटके हुए हैं। इसमें अमेरिका ने भी अड़ंगा लगाया मगर बाद में छूट दे दी थी। फिर भी प्रोजेक्‍ट शुरू नहीं हो सका क्‍योंकि इक्विपमेंट्स देने को कोई देश राजी नहीं हो रहा था। मजबूरन ईरान को चीन का साथ मांगना पड़ा।
ईरान ने चीन का ऑफर चार साल तक टाले रखा मगर अमेरिकी प्रतिबंधों के दबाव में उसने इस बार मंजूरी दे दी। मध्‍य एशिया के जानकार वेदप्रताप वैदिक मानते हैं कि अब चीन और ईरान के करीब आने से पाकिस्‍तान और ईरान में भी नजदीकियां बढ़ेंगी। दोनों देश अभी तक शिया-सुन्‍नी के नाम पर अनबन में रहे हैं। चीन उनके बीच मध्‍यस्‍थ बनकर अपना उल्‍लू सीधा करेगा क्‍योंकि उसकी नजर ‘सिल्‍क रूट’ पर है। ईरान की कोशिश होगी कि पाकिस्‍तान का ग्‍वादर पोर्ट और चाहबहार आपस में कनेक्‍ट हो जाएं। ग्‍वादर पूरी तरह से चीन के कब्‍जे में हैं। चीन को ‘बदरे-जस्‍क’ पोर्ट भी दिया जा सकता है जो चाहबहार से सिर्फ 350 किलोमीटर दूर है। चीन ने ईरान पर अपना वही मॉडल अपनाया है, जो उसने कई देशों पर आजमाया हुआ है। 400 अरब डॉलर के इनवेस्‍टमेंट की डील कर उसने ईरान को अपने वश में कर लिया है। इससे विकास के बहुत सारे काम होंगे तो ईरान को लगेगा कि चीन उसका सच्‍चा दोस्‍त है। फिर हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर चीन कहे कि उसे ईरान में मिलिट्री बेस बनाना है और वो मान जाए। अगर ऐसा होता है तो वेस्‍टर्न एशिया में चीन अपनी धाक जमाने में कोई कसर बाकी नहीं रखेगा। फिर ईरान उसका अड्डा होगा और इजरायल-सऊदी अरब उसका निशाना।

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