लंदन । ज्वालामुखियों में कब और कैसे विस्फोट होता है, के बारे में पता लगाने की उम्मीद वैज्ञानिकों को विस्फोट हो चुके इलाकों में मिले छोटे क्रिस्टल से मिली है। करीब डेढ़ दशक पहले हवाई में हुए ज्वालामुखी विस्फोटों से बने खनिजों के छोटे क्रिस्टल के अवलोकन से शोधकर्ताओं ने भविष्य में होने वाले विस्फोटों का पूर्वानुमान लगाने की संभावना पाई है। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने मैग्मा के बहाव के कम्प्यूटर मॉडल्स को टेस्ट करन का तरीका निकाला है जिससे वे पुराने विस्फोटों के पर नई रोशनी डाल सकते हैं जिससे आगे होने वाले ज्वालामुखी विस्फोटों का अनुमान भी लगाया जा सकेगा।
स्टैनफोर्ट के स्कूल ऑफ अर्थ, एनर्जी एंड एनवायर्नमेंट साइंसेस में जियोफिजिक्स के एसिसटेंट प्रोफेसर जेनी सकल ने बताया,“हम वास्तव में इस क्रिस्टल के आंकड़ों से विस्फोट से पहले बहाव की मात्रात्मक विशेषताएं निकाल सकते हैं और बिना खुदाई किए उन प्रक्रियाओं के बारे में सीख सकते हैं जो विस्फोट के लिए जिम्मेदार होती हैं।”सकल ने बताया है कि यह उनके लिए बहुत बड़ी बात है। एक मिलीमीटर के आकार के ये क्रिस्टल साल 1959 में हवाई के किलोएआ ज्वालामुखी के विस्फोट के साथ निकले लावा में से खोजे गए थे। इनका विश्लेषण करने पर पाया गया कि इनका एक असामान्य लेकिन नियमित पैटर्न हैं जो सतह के नीचे के मैग्मा की तरंग से बना था। इसी से इन क्रिसस्टल की मैग्मा में बहाव की दिशा निश्चित होती है। सकल इस अध्ययन की वरिष्ठ लेखिका हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें हमेशा से ही संदेह था कि ये क्रिस्टल उम्मीद से कहीं ज्यादा रोचक और अहम है जितना की उन्हें महत्व दिया जा रहा है। यह एक संयोग की ही बात थी कि सकल को अपने संदेह पर काम करने का मौका मिला। उन्हें इन क्रिस्टलों के बारे तब संदेह हुआ जब वे एकस्टैनफोर्ट स्नातक छात्र की प्रस्तुति देख रही थीं जो महासागरों में माइक्रोप्लास्टिक पर था। सकल ने उस प्रस्तति की वक्ता मिशेल डीबेंडेचो को इस काम पर लगाया कि क्या उनकी थ्योरी किलोएआ में क्रिस्टलों पर लागू की जा सकती है।
शोधकर्ताओं ने मैग्मा के ठंडे होने के बाद मिले इन क्रिस्टल का अध्ययन किया जो कि काले, छेद वाले पत्थर के थे जिनमें गैस भरी थी। ये क्रिस्टल लावा के बाहर निकलते ही ठंडे वातावरण के प्रभाव में बनने लगते हैं। यह प्रक्रिया इतनी तेजी से होती है कि ये क्रिस्टल सही तरह नहीं बनते हैं और बहुत ही छोटे आकार में बन जाते हैं। लावा ट्यूब के अंदर मैग्मा के बहाव की तरंगें का प्रभाव इन क्रिस्टल पर पड़ता है जिसके अनुसार इनकी अनुस्थिति बनती है। जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि लावा ट्यूब के अंदर के सिस्टम को समझा जा सकता है। मालूम हो कि वैज्ञानिकों के लिए आज भी यह जान पाना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है कि ज्वालामुखीयों में कब और कैसे विस्फोट होता है। लावा ट्यूब में बहुत सारी प्रक्रियाओं के बाद विस्फोट होता है। विस्फोट के बाद सतह के नीचे उसके आने के संकेत देने वाले निशान आमतौर पर विस्फोट में ही नष्ट हो जाते हैं।