नई दिल्ली। विश्व व्यापार संगठन डब्ल्यूटीओ को कोरोना रोधी टीकों पर पेटेंट से कुछ साल के लिए छूट देने पर अभी फैसला लेना है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भारत को खास फायदा होने की उम्मीद नहीं है। भारत में टीके का मौजूदा संकट अगले दो महीनों में दूर होने की संभावना है जबकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि डब्ल्यूटीओ पेटेंट पर कब निर्णय लेगा। नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पाल भी इस बात को मानते हैं। उनके अनुसार, मॉडर्ना कंपनी ने पहले ही ऐलान कर दिया था कि कोई उसका टीका बनाना चाहे तो बना ले, वह उसके खिलाफ मुकदमा नहीं करेगी। मगर, अभी तक विश्व में कहीं भी यह टीका नहीं बन सका है इसलिए पेटेंट से छूट मिलना ही काफी नहीं है। संभावना है कि डब्ल्यूटीओ पांच साल के लिए टीकों से पेटेंट हटा देगा, लेकिन वह कंपनी को तकनीक भी देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है। ऐसे में कोई भी भारतीय या विदेशी कंपनी फाइजर या मॉडर्ना के टीके को बनाने के लिए स्वतंत्र है पर बिना तकनीक के इसे तैयार करना बेहद कठिन है। अगर कोई कंपनी नकल कर टीका बना भी लेती है तो उसे रेगुलेटर की मंजूरी हासिल करने के लिए न्यूनतम क्लीनिकल ट्रायल से गुजरना होगा। इसमें कई महीने या साल लग सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत की टीके की जरूरत तात्कालिक है। दो महीनों के बाद देश में टीके का इतना उत्पादन होना शुरू हो जाएगा जितना रोजाना लगा पाने की क्षमता है। सरकार ने दिसंबर तक 216 करोड़ खुराक तैयार करने की कार्ययोजना भी पेश कर दी है। जुलाई से स्पूतनिक टीके का उत्पादन कई कंपनियों में शुरू होने जा रहा है। भारत बायोटेक, नोवाक्स, बायोलॉजिकल ई, जिनोवा तथा कैडिला के टीकों के दूसरे एवं तीसरे चरण में परीक्षण चल रहे है, वे भी आ जाएंगे। जुलाई अमेरिका से फाइजर टीके की आपूर्ति भी शुरू हो जाएगी। अभी प्रतिमाह आठ करोड़ खुराक तैयार हो रही हैं। जुलाई-अगस्त से यह प्रतिमाह 15 करोड़ खुराक से अधिक होंगी। इसका मतलब है कि 50 लाख लोगों को रोजाना टीका लगाना संभव हो सकेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि यह उपलब्धता पर्याप्त होगी और आने वाले दिनों में इसमें इजाफा होता जाएगा। ऐसे में टीकों के पेटेंट मुक्त होने से कोई खास फायदा होता नहीं दिख रहा है।

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