नई दिल्ली। एक ताजा अध्ययन का दावा है कि अगर इंसान अपने तनाव से मुक्ति पा ले तो वह 150 साल तक आसानी से जी सकता है।शोधकर्ताओं का कहना है कि हत्या, कैंसर और जानलेवा दुर्घटनाओं के अलावा आजकल लोगों की मौत का बड़ा कारण मुसीबतों से उबर पाने की क्षमता को खो देना है। इस अध्ययन को सिंगापुर की जेरो नाम की कंपनी ने बफौलो न्यूयॉर्क में रोसवेल पार्क कॉम्प्रीहेंसिव कैंसर सेंटर के साथि किया था। इस अध्ययन में अमेरिका, यूके और रूस के तीन बड़े समूहों ने हिस्सा लिया था जिसमें उम्र बढ़ने की गति का विश्लेषण किया गया था। एक रिपोर्ट के अनुसार इस अध्ययन में पाया गया कि 80 साल का व्यक्ति तनावों से उबरने में 40 साल के व्यक्ति से तीन गुना ज्यादा समय लेता है। जब कोई शरीर बीमारी, दुर्घटना जैसी तनावपूर्ण घटना से गुजरता है उसके ठीक होन की दर उम्र के साथ कम होने लगती है और उसके ठीक होने में ज्यादा समय लगने लगता है। 40 साल का का स्वस्थ व्यस्क के लिए तबियत में सुधार की दर दो सप्ताह होती है, लेकिन 80 साल के व्यस्क को औसतन सेहत सुधारने में करीब छह महीने का समय लगता है। रिपोर्ट के मुताबिक यह शोध का अनुमान है कि करीब 120 से लेकर 150 साल की उम्र के बीच इंसान की उबर पाने की क्षमता पूरी से खो देते हैं। ऐसा उन लोगों में भी पाया गया जिन्हें कोई बड़ी बीमारी नहीं थी। शोधकर्ताओं का कहना है कि उम्र बढ़ने की प्रक्रिया में जीवन काल को बढ़ाने की चाह के कारण उबरने की क्षमता के कारक में बदलाव करने की जरूरत है। जेरो के कार्यकारी प्रमुख पीटर फेदिचेव बताते हैं कि इंसानों की बढ़ती उम्र बिखराव की कगार पर काम करने वाले जटिल तंत्रों के समान तत्व दिखाती है। शोधकर्ताओं ने एक डायनामिक ऑर्गेनिज्म स्टेट इंडीकेटर नाम का संकेतक बनाया। इससे ब्लड सेल काउंट्स के आंकड़ों से सीबीसी में उतार चढ़ाव का पता चलता है और स्टेप काउंट्स के लोगों के तनाव का अनुभव होने पर लोगों को उससे उबरने में लगने वाले समय का पता चलता है। उन्होंने पाया कि उबरने का समय उम्र के साथ बढ़ता चला जाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि उनकी पड़ताल बताती है कि सेहत में सुधार की दर उम्र बढ़ने का एक अहम संकेतक है। यह दवाओं का विकास करने में मददगार हो सकता है जिसे यह प्रक्रिया धीमी हो सके और जीवन काल लंबा हो सके।

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