बीजिंग । चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, पिछले दिनों अमेरिकी सीनेट अध्यक्ष नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद अमेरिका के साथ एकाएक असहज हुए संबंधों की वजह से पैदा हुई दिक्कतों का तोड़ निकालने में जुट गए हैं। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आर्थिक मोर्चे पर बड़ी चुनौतियां दिखाई दे रही हैं। अगर अमेरिका और ताइवान के समर्थक देशों ने चीन के विरुद्ध कठोर आर्थिक कदम उठाए तो पहले से ही निगेटिव ग्रोथ दिखा रही चीन की इकोनॉमी और खस्ताहाल हो सकती है।
ताइवान का मामला केवल चीन की राष्ट्रवादी भावनाओं को उभारने भर का मामला नहीं है। इसके साथ ही इकोनॉमी और अमेरिका और उसके सहयोगियों के साथ राजनयिक संबंधों का सवाल भी घनिष्ठ रूप से जुड़ा है। शी जिनपिंग अब अमेरिकी हाउस स्पीकर नैन्सी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद कड़ी प्रतिक्रिया देकर खुद पैदा किए गए संकट से निपटने के लिए एक रास्ता निकालने के लिए छटपटा रहे हैं। यह शी जिनपिंग के लिए राजनीतिक रूप से संवेदनशील समय है, क्योंकि उनको 20वीं पार्टी कांग्रेस का सामना करना हैं। जिसका समय नजदीक आ रहा है।
वह तब तक ताइवान के मुद्दे पर कोई रास्ता निकालकर जिनपिंग चीनी लोगों को दिखाना चाहेंगे कि ताइवान जलडमरूमध्य में तनाव से निपटने में सक्षम हैं और एक चीन की नीति के अपने संकल्प पर भी अडिग हैं। चीन के सैनिक ताकत के प्रदर्शन के कुछ नतीजे भी होंगे और शी जिनपिंग यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि चीनी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाए बिना उनसे प्रभावी तरीके से निपटने में वे सक्षम साबित हों। शी जिनपिंग एक ऐसी कठिन स्थिति में फंस गए हैं जहां उन्हें आर्थिक विकास को भी बनाए रखना है, साथ ही अपना क्षेत्रीय वर्चस्व भी कायम रखना है। अगर अमेरिका ने कोई कठोर प्रतिक्रिया की तो ऐसा करना असंभव हो जाएगा।
ताइवान की बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय मान्यता से भी चीन को चिंता होने लगी है। जिनपिंग चीन के अंदर राष्ट्रवादी ताकतों के जबरदस्त दबाव में हैं। इसके कारण ताइवान की अर्थव्यवस्था को पंगु बनाने के लिए चीन ने केवल सैन्य अभ्यास ही नहीं किया है। चीन ने 2,000 से अधिक ताइवानी खाद्य उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है और ताइवान को रेत निर्यात रोक दिया है। इसके अलावा इस हफ्ते ताइवान की सरकारी वेबसाइटों पर विदेशी साइबर हमले भी हुए।