वाशिंगटन। अफगानिस्‍तान में तालिबान के कब्जे के बीच सीआइए निदेशक जे बर्न्‍स वार्ता के लिए काबुल पहुंचे थे। अमेरिकी अधिकारियों ने इसकी पुष्टि की है। अधिकारियों की ओर से कहा गया है कि बर्न्‍स काबुल में तालिबान के शीर्ष नेताओं से व्‍यक्तिगत बातचीत हुई है।अफगानिस्‍तान में तालिबानी कब्‍जे के बाद यह अमेरिका के किसी शीर्ष अफसर की पहली वार्ता है। खास बात यह है कि अमेरिकी सीआइए प्रमुख की काबुल यात्रा उस समय हुई है, जब तालिबान अमेरिकी सैनिकों की वापसी को लेकर सख्ती दिख रहा है। तालिबान ने अमेरिकी सैनिकों की वापसी के लिए 31 अगस्‍त की डेडलाइन दी है। तालिबान साफ कर चुका है कि जब तक अफगानिस्‍तान में एक भी अमेरिकी सैनिक रहेगा वह सरकार गठन की प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाएंगे। उधर, अमेरिकी राष्‍ट्रपति बाइडन ने तालिबान के इस डेडलाइन को गंभीरता से लेकर इस घटना को इसी कड़ी के रूप में जोड़कर देखा जा रहा है।
बाइडन प्रशासन की ओर से वार्ता को गोपनीय रखा जा रहा है। अमेरिकी सरकार की ओर से बर्न्‍स की इस यात्रा का कोई विवरण नहीं दिया है। व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जेन साकी ने बर्न्स की यात्रा पर चर्चा करने से इंकार कर दिया। हालांकि बाइडन प्रशासन ने माना कि वह तालिबान के साथ नियमित संपर्क में हैं। सीआइए और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद ने बर्न्स की यात्रा पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, जिसकी रिपोर्ट पहले दी थी। बाइडन प्रशासन की ओर से कहा गया है कि इस यात्रा का अमेरिकी सैनिकों की वापसी से कोई संबंध नहीं है।जानकारों का मानना है कि बाइडन प्रशासन में बर्न्‍स को बेहद अनुभवी राजनयिक माना जाता हैं। पूर्व राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप के कार्यकाल में कतर में शुरू हुई राजनयिक वार्ता का नेतृत्‍व बर्न्‍स ने ही किया था। अमेरिका में वह बैक चैनल वार्ताकार के रूप में जाने जाते है। अमेरिकी राष्‍ट्रपति जो बाइडन ने इस बार भी यह जिम्‍मेदारी अनुभवी राजनयिक बर्न्‍स को सौंपी है। बर्न्‍स काबुल में पहली बार तालिबान के प्रमुख नेताओं से वहां के हालात पर गुप्‍त चर्चा की।
बर्न्‍स की अफगानिस्तान की गुप्त यात्रा के कई निहितार्थ हो सकते हैं। अफगानिस्‍तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के साथ जिस तरह काबुल में चीन और रूस ने अपनी दिलचस्‍पी दिखाई है,इससे अमेरिका की चिंता बढ़ी है। बर्न्‍स की इस यात्रा के जरिए अमेरिका ने संदेश दिया है कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बावजूद वह अमेरिकी हितों के प्रति संजीदा है। अमेरिका ने तालिबान से कोई कूटनीतिक रिश्‍तों की पहल नहीं कर यह संदेश दिया है कि वह अफगानिस्‍तान में अब भी प्रमुख खिलाड़ी है। अमेरिका ने यह कदम तब उठाया है, जब चीन और रूस तालिबान के साथ कूटनीतिक रिश्‍तें बनाने की बात कर रहा है।

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