काबुल। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद हुकूमत बदलने कवायद में भविष्य को लेकर अलग-अलग आशंकाएं जताई जा रही हैं। एक ओर जहां पाकिस्तान और चीन आशान्वित हैं तो वहीं भारत की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इस बीच अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी के भाई हशमत गनी ने कहा है कि यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि पाकिस्तान, अफगान में एक प्लेयर है, लेकिन उसके पास तालिबान पर नियंत्रण रखने के लिए पैसे नहीं हैं। हशमत का बयान उन खबरों के बीच आया है, जिसमें कहा जा रहा है कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने तालिबान से सरकार बनाने के मुद्दे पर मुलाकात की। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने सोमवार को तालिबान और अफगान नेताओं से स्थायी शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए समावेशी राजनीतिक समाधान के लिए काम करने का आग्रह किया।
एक चैनल से बात करते हुए हशमत गनी ने तालिबान में शामिल होने की खबरों को खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने ‘उनके शासन को स्वीकार कर लिया है’ लेकिन ‘उनके साथ शामिल होना स्वीकार नहीं किया।’ हशमत गनी ने भारत को सलाह दी है कि उसे अपना दूतावास बंद नहीं करना चाहिए था। उन्होंने कहा- ‘अफगानिस्तान के लोगों के लिए काम करते रहें।’ हशमत ने कहा- ‘हम हमेशा से दूसरों की लड़ाई लड़ रहे हैं और अफगान आपस में लड़ रहे थे। ट्रंप (पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति) ने सीधे तालिबान के साथ एक समझौता किया, सरकार को किनारे कर दिया और अब वे चाहते हैं कि अफगान आपस में लड़ें।’ उन्होंने कहा कि अगर भारत आईएसआई के साथ लड़ाई करना चाहता है तो वह बिना अफगानिस्तान का इस्तेमाल किए सीधे लड़े। तालिबान और पाकिस्तान सरकार के बीच विचार-विमर्श में खुफिया एजेंसी आईएसआई की बड़ी भागीदारी सामने आई है।

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