नई दिल्ली। तालिबान में पैदा हुई स्थिति के बाद भारत अभी तत्काल कोई बड़ा कदम उठाने के बजाय इंतजार करेगा। भारत अफगानिस्तान में बनने वाली नई सरकार के स्वरूप और तालिबान के रुख को सतर्कतापूर्वक भांपकर वार्ता या कूटनीतिक रिश्तों पर अपनी रणनीति तय करेगा। इस दौरान अमेरिका सहित यूएन के अन्य देशों से भारत का संपर्क बना रहेगा और कूटनीतिक सामंजस्य बनाने का प्रयास होगा। सूत्रों ने कहा कि अफगानिस्तान की स्थिति बहुत तेजी से बदली है। अभी वहां बहुत चीजें तय होनी है। इसमे भारत के लिए सबसे ज्यादा अहम ये है कि अफगान के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व नए शासन में नजर आता है या नही। साथ ही तालिबान अंतरराष्ट्रीय समुदाय से किये वायदों पर कितना खरा उतरता है ये भी देखना अहम होगा। भारत ने स्पष्ट किया है कि हिंसा और आतंकवाद के लिए अफगानिस्तान की जमीन का उपयोग नही होना चाहिए। अपने सुरक्षा हितों को लेकर भारत काफी संजीदा है। क्योंकि अगर तालिबान शासन में अस्थिरता या आतंक बढ़ता है तो इसका असर कश्मीर पर भी पड़ सकता है। भारत अफगानिस्तान में अपने किये हुए विकास व आधारभूत ढांचे से जुड़े काम की सुरक्षा की गारंटी भी चाहता है। सूत्रों ने कहा, भारत तालिबान से शीर्ष स्तर पर भले ही संपर्क में न रहा हो लेकिन बीते दिनों में बैकडोर चैनल से बातचीत होती रही है। भारत चाहेगा कि सीधे संपर्क की गुंजाइश बनी रहे। रणनीतिक जानकारों का कहना है कि भारत सरकार तालिबान को भले मान्यता न दे, लेकिन उसे तालिबान से सीधे या बैकडोर चैनलों से बात करनी ही होगी। क्योंकि भारत का बड़ा दांव लगा हुआ है। अगर तालिबान सकारात्मक रुख अपनाता है तो भारत अफगानिस्तान में विरोधी ताकतों को खुला मैदान शायद न देना चाहे। विदेश मंत्रालय ने भी पिछले दिनों कहा है कि वह अफगानिस्तान को लेकर सभी स्टेकहोल्डर्स – भागीदार पक्षों से बातें कर रहा है। सूत्रो ने कहा कि भारत के लिए फिलहाल जटिल स्थिति है। क्योंकि अफगानिस्तान का भविष्य आने वाले दिनों में क्या होगा अभी तय नही है। इसलिए भारत अपना हर कदम फूंक फूंककर रखेगा।

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