नई दिल्ली। अफगानिस्तान में दो दशक से जारी जंग से अमेरिकी और नाटो बलों की वापसी के साथ ही तालिबान ने आतंक मचाना शुरू कर दिया है। अफगानिस्तान में राज करने की कोशिशों में जुटे तालिबान ने देश के समूचे दक्षिणी भाग पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया और धीरे-धीरे काबुल की तरफ बढ़ रहा है। इस बीच तालिबान के प्रवक्ता ने पूरी दुनिया को यह भरोसा दिलाया है कि उसके लड़ाके किसी भी एंबेसी और राजदूतों को निशाना नहीं बनाएंगे। प्रवक्ता मोहम्मद सुहैल शाहीन ने अफगानिस्तान में भारत के कामों की सराहना की है, मगर सेना के रूप में भारत की एंट्री को लेकर चेताया भी है। इतना ही नहीं, भारतीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की खबरों और पाकिस्तानी आतंकी संगठनों से अपने संबंधों पर भी बात की है। तो चलिए जानते हैं किस मसले पर तालिबान ने क्या कहा है। विभिन्न देशों द्वारा दूतावासों को खाली कराने और अपने राजनयिकों को वापस बुलाने जैसी खबरों के बीच तालिबान के प्रवक्ता मोहम्मद सुहैल शाहीन ने बताया कि हमारी तरफ से दूतावासों और राजनयिकों को कोई खतरा नहीं है। हम किसी दूतावास या राजनयिक को निशाना नहीं बनाएंगे। हमने अपने बयानों में भी कई बार ऐसा कहा है। यह हमारी प्रतिबद्धता है। अफगानिस्तान में भारत की परियोजनाओं का क्या होगा, सवाल पर प्रवक्ता ने कहा कि हम अफगानिस्तान के लोगों के लिए किए गए हर काम की सराहना करते हैं जैसे बांध, राष्ट्रीय और बुनियादी ढांचा परियोजनाएं और ऐसे सभी कामों की सराहना करते हैं जो अफगानिस्तान के विकास, पुनर्निर्माण और लोगों के लिए आर्थिक समृद्धि के लिए है। वे (भारत) अफगान लोगों की या राष्ट्रीय परियोजनाओं में मदद करते रहे हैं। भारत ने पहले भी ऐसा किया है। मुझे लगता है कि इसकी सराहना की जानी चाहिए। यह पूछे जाने पर कि क्या तालिबान भारत को आश्वस्त कर सकता है कि उसके खिलाफ अफगान की धरती का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा, इस पर तालिबान के प्रवक्ता मोहम्मद सुहैल शाहीन ने कहा कि हमारी एक सामान्य नीति है कि हम किसी को भी पड़ोसी देशों सहित किसी भी देश के खिलाफ अफगान धरती का उपयोग करने की अनुमति नहीं देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। धमकी भरे लहजे में तालिबानी प्रवक्ता ने कहा कि अगर वे (भारत) सैन्य रूप से अफगानिस्तान आते हैं और उनकी मौजूदगी होती है, तो मुझे लगता है कि यह उनके लिए अच्छा नहीं होगा। उन्होंने अफगानिस्तान में अन्य देशों के सैन्य उपस्थिति का भाग्य देखा है, इसलिए यह उनके (भारत) लिए एक खुली किताब है। अल्पज्ञात समूहों (जिन समूहों को लोगों के बारे में लोगों में जानकारी कम है) की सूची में हिंदू महासभा, आंध्र प्रदेश लाइब्रेरी एसोसिएशन, कर्नाटक साहित्य परिषद और बंगाल की अनुशीलन समिति शामिल हैं। सरकार ने कम ज्ञात घटनाओं और साहित्य की सूची भी तैयार की। पहली सूची में सूरत नमक आंदोलन (1840), कंपनी राज के खिलाफ युद्ध, जिसे सिपाही विद्रोह भी कहा जाता है, (1857-58), बुंदेलखंड प्रतिरोध (1808), और रंगपुर किसान विद्रोह (1783) शामिल हैं। वहीं, इसकी दूसरी सूची में एक्षलोक गीता (मराठी पुस्तक, 1910), हिंदू धर्म का झंडा (हिंदी पैम्फलेट 1927), गदर दी गंज (गुरुमुखी, 1910), चौरी चौरा जजमेंट (अंग्रेजी, 1923), और इंकलाब (उर्दू, 1927) शामिल हैं। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों ने सूची के कुछ नामों को लेकर आलोचना की। इतिहासकार मृदुला मुखर्जी ने कहा कि हम सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद और बिरसा मुंडा को ‘अनसंग हीरो’ (गुमनाम नायक) नहीं कह सकते। उन्होंने सूची में तात्या टोपे, नानाजी देशमुख और रवि नारायण रेड्डी को भी शामिल किया है। दरअसल, सूची में उन लोगों के भी कुछ नाम शामिल हैं, जो 1930 के दशक में पैदा हुए और स्वतंत्रता सेनानी कहलाए। यह एक बहुत ही असमान सूची है। उन्होंने कहा कि नामों के चयन में एकरूपता नहीं है, यह बेतरतीब सूची है। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के सांसद और शिक्षा की स्थायी समिति के प्रमुख विनय सहस्रबुद्धे ने इससे असहमति जताई है। सांसद ने कहा कि अगर आपने उनके साथ न्याय नहीं किया है, तो न्याय करने का एक समय होना चाहिए। चाहे वह सुभाष चंद्र बोस हों या कोई अन्य, उन्हें वह श्रेय नहीं मिला जिसके वे हकदार हैं।

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