नई दिल्ली। महामारी कोरोना से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के बिगड़े हालात को लेकर एक शोध में नया खुलासा हुआ है। पिछले साल अक्टूबर-नवंबर के महीने में कोरोना से बिगड़े हालात के पीछे पराली जलाने से होने वाला वायु प्रदूषण प्रमुख कारण था? पंजाब और हरियाणा के खेतों में जलाई जाने वाली पराली से फैली प्रदूषित हवा के कारण ठंड के दिनों में भी दिल्ली में कोरोना ने विकट रूप अख्तियार किया? पुणे के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटेरियोलॉजी (आईआईटीएम) के वैज्ञानिकों की ताजा शोध के मुताबिक, पराली जलाने से हवा में मौजूद ब्लैक कार्बन ही वह बड़ा कारक था, जिसकी वजह से सार्स-कोवि-2 वायरस ने पिछले साल दिल्ली में अक्टूबर-नवंबर के महीने में कहर बरपाया।
अर्बन क्लाइमेट नाम के रिसर्च जर्नल में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में आईआईटीएम के वैज्ञानिकों ने कहा है कि दिल्ली में पिछले साल सितंबर के महीने में कोरोना के मामलों में जबर्दस्त कमी आई थी। उस समय दिल्ली में कोरोना संक्रमण के मामले प्रति दिन घटकर 500 तक रह गए थे। लेकिन उसके अगले महीने से ही दिल्ली में कोरोना संक्रमण की रफ्तार तेजी से बढ़ी। आईआईटीएम के वैज्ञानिकों के मुताबिक, पूरे देश ने जहां कोरोना महामारी की दो लहरों का कहर झेला, वहीं दिल्ली में इस वायरस की वजह से अब तक 4 लहरें आ चुकी हैं। वैज्ञानिकों ने कहा कि दिल्ली में पिछले साल जून में कोरोना की पहली लहर देखी गई, सितंबर में दूसरी और अक्टूबर-नवंबर के महीने में तीसरी लहर ने अपना प्रभाव दिखाया। वहीं, इस साल अप्रैल में दिल्ली ने कोरोना की चौथी लहर का सामना किया।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के प्रदूषण रिसर्च प्रोजेक्ट ‘सफर’ के सितंबर से लेकर दिसंबर तक के आंकड़ों के आधार पर आईआईटीएम के वैज्ञानिकों ने यह शोध किया है। अपनी रिपोर्ट में उन्होंने कहा है कि इस दौरान उन्होंने हवा में पीएम2.5 और ब्लैक कार्बन की मौजूदगी का अध्ययन किया है। अपने रिसर्च के आधार पर इन वैज्ञानिकों ने कहा है कि दिल्ली में पहली दो लहरों के दौरान कोरोना संक्रमण के मामले जहां रोज 4500 आते थे, वहीं तीसरी लहर में यह आंकड़ा बढ़कर 8500 तक जा पहुंचा था। वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में पाया कि हवा में ब्लैक कार्बन के घुलने की गति का पराली जलाने के मौसम में कोविड-19 संक्रमण बढ़ने की दर से सीधा जुड़ाव होता है। इसलिए पराली जलने से फैलने वाले प्रदूषण के कारण कोरोना के संक्रमण की तादाद बढ़ गई, वहीं जब पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई तो महामारी के संक्रमण दर में भी कमी देखी गई।
वैज्ञानिक और इस रिसर्च के लेखक ने बातचीत में कहा कि दिल्ली में कोरोना महामारी की तीसरी लहर के पीछे प्रदूषण और पराली जलाने की परिकल्पना (हाइपोथिसिस) के साथ ही यह शोध किया गया है। उन्होंने बताया कि रिसर्च करने के दौरान पाया गया कि हवा में ब्लैक कार्बन पार्टिकल्स का आकार बढ़ता है और यह अन्य खतरनाक गैसों के साथ मिलकर और हानिकारक होता जाता है। पराली जलाने से हवा में इन खतरनाक गैसों की तादाद बढ़ जाती है, जो सर्दी के मौसम में और भी नुकसान पहुंचाती है। इस दौरान प्रदूषित हवा में सांस लेने से यह मानव शरीर के श्वसन तंत्र को गंभीर रूप से क्षति पहुंचाती है।