नई दिल्ली। देश में कोरोना की दूसरी लहर को लेकर अभिभावकों को बच्चों का खास ख्याल रखने की जरूरत है। उन्हें बच्चों पर खास तौर पर निगरानी रखनी होगी और देखना होगा कि उनमें किसी भी तरह के कोविड-19 संबंधी लक्षण दिखाई तो नहीं दे रहे हैं। इस दौरान वैसे तो संक्रमण से बचने और उसके इलाज के बारे में बहुत कुछ कहा जा चुका है, लेकिन इस मामलों में बच्चों की समस्याएं और उसके तनाव आदि से निपटने के लिए बहुत कम चर्चा हुई है। इस डेढ़ साल में बच्चों को भावनात्मक निराशा, सामाजिक दूरियां जैसे की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से दो चार होना पड़ा है, जो एक तरह से हमें समांतर महामारी में धकेलता दिख रहा है।
यह बात पहले ही साफ की जा चुकी है कि बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे होंगे जो अलाक्षणिक या असिम्प्टोमैटिक होंगे। बाल रोग विशेषज्ञों को कोविड -19 लक्षण न दिखने वाले बाल मरीजों में पहले ही कोविड एंटीबॉडी दिखने को मिलने लगी हैं। इनमें पहले कोविड-19 संक्रमण नहीं मिला था या उनका टेस्ट करने की स्थिति ही नहीं आई थी। वहीं कई बच्चों में हल्का बुखार, खांसी, उल्टी, दस्त, बदनदर्द और थकान जैसे लक्षण दिखेंगे। इसका मतलब यही हुआ कि अधिकांश बच्चों में उपचार से पारिवारिक या बाल रोग चिकित्सक की निगरानी में इलाज हो जाएगा। डॉ समीर हसन दलवाई का कहना है कि माता पिता को घर पर ही एक सामान्य लक्षणों का एक चार्ट बना कर रख लेना चाहिए और बच्चों पर खास तौर पर निगरानी रखनी चाहिए। ऐसे में जागरुकता और निगरानी दोनों अहम होती हैं। कुछ गड़बड़ होने पर उसे नजरअंदाज करना ठीक नहीं होगा। इसका मतलब यही हुआ कि अधिकांश बच्चों में उपचार से पारिवारिक या बाल रोग चिकित्सक की निगरानी में इलाज हो जाएगा। डॉ का कहना है कि माता पिता को घर पर ही एक सामान्य लक्षणों का एक चार्ट बना कर रख लेना चाहिए और बच्चों पर खास तौर पर निगरानी रखनी चाहिए। ऐसे में जागरुकता और निगरानी दोनों अहम होती हैं। कुछ गड़बड़ होने पर उसे नजरअंदाज करना ठीक नहीं होगा।
लंबे समय तक तेज बुखार, सांस लेने में तकलीफ, उल्टी, दस्त डीहाइड्रेशन, पेट में तेज दर्द ,आंखों का लाल होना, शरीर पर दाने जैसे लक्षणों के अलावा बच्चों के बर्ताव में बदलाव तक को खतरे का संकेत मानन चाहिए और फौरन डॉक्टर से सलाह लेने में संकोच नहीं करना चाहिए। सामान्य सावधानियां और निगरानी लंबे समय में बच्चे की देखभाल में फायदेमंद साबित होंगी। शारीरिक लक्षणों के अलावा माता पिता को बच्चों पर मानोवैज्ञानिक और बर्ताव संबंधी प्रभावों और बदलावों पर भी निगरानी रखनी होगी। एक साल से बच्चे घरों में बंद हैं वे पड़ोस, बाहरी खेलकूद, स्कूल आदी के से दूर हैं। ऐसे में बच्चों के मन में निराशा का मन में घर करना कोई असामान्य बात नहीं है। वहीं ऑनलाइन पढ़ाई से उन्हें कई दूसरी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उनकी पढाई भी प्रभावित हो रही है। आंखों और नींद संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं बच्चों को ज्यादा समय देना आज की एक बड़ी जरूरत है। इसका सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि आप बच्चों का शेड्यूल बनाएं। उन्हें अपने घर की दूसरी गतिविधियों में शामिल करें जैसे वे मां के साथ खाना बनाने में मदद कर सकते हैं। भाई बहनों के साथ खेलना, आदि चीजें बहुत फायदेमंद होगा।
इस शेड्यूल में पूरे परिवार को एक साथ हंसी खुशी का समय बिताना लंबे समय में बहुत अच्छे नतीजे देने वाला हो सकता है। बता दें कि कोविड-19 की दूसरी लहर ने जो सबसे ज्यादा चिंता पैदा की है वह बच्चों का संक्रमित होना। पिछले साल पहली लहर में कोविड संक्रमण बच्चों में नहीं पाया गया था। लेकिन दूसरी लहर में बच्चों में अच्छी खासी संख्या में संक्रमण पाया गया है। वहीं भारत में अभी तक बच्चों के लिए वैक्सीन लगवाने की अनुमति नहीं दी गई है।