नई दिल्ली। भारत में पिछले कई साल से आर्सेनिक तत्व लोगों में कैंसर फैला रहा है। देश के 200 से भी अधिक शहरों में इसका खतरा है। बिहार के मुंगेर जिले की रहने वाले 70 साल की प्रियाब्रथ शर्मा भी इससे ग्रसित हैं। वह पिछले कई साल से बिस्तर पर ही हैं। उनका कहना है, ‘मैं कई साल पहले पैरों से चलने में लाचार हो गई। मेरा निचला शरीर हिल नहीं सकता। मैं कुछ साल पहले दिल्ली के एम्स भी गई थी इलाज के लिए। वहां डॉक्टरों ने बताया कि मुझे आर्सेनिक संबंधी बीमारी है।’ आर्सेनिक दक्षिण एशियाई देशों जैसे भारत, नेपाल और बांग्लोदश में भूमिगत पानी में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। आर्सेनिक के संपर्क में आने से फैलने वाली बीमारी उत्तर भारत के लोगों के लिए बड़ी चिंता का विषय है।
अध्ययन बताते हैं कि भारत में 1 करोड़ लोग कैंसर फैलाने वाले तत्वों से युक्त भूमिगत पानी का इस्तेमाल करते हैं। इनमें से करीब 10 लाख लोगों को अस्पताल में इलाज कराने आना पड़ा है। गंगा नदी के किनारे रहने वाली प्रियाबथ शर्मा कहती हैं, ‘डॉक्टरों ने मुझसे कहा है कि मैं कुएं या हैंडपंप का पानी ना पियूं। मेरे गांव खैरा बस्ती में 100 लोगों से अधिक कैंसर और उससे संबंधी जटिलताओं से जूझ रहे हैं। इसका कारण दूषित पानी है। अन्य लोगों के शरीर में चकत्ते पड़े हुए हैं। एक सिविल सोसायटी ग्रुप इनर वायस फाउंडेशन के सौरभ सिंह के अनुसार गंगा नदी के आसपास बसे उत्तर भारत के 200 शहरों में पीने के पानी में आर्सेनिक का खतरा है। पिछले 25 साल में करीब 10 लाख लोग आर्सेनिक के प्रभाव में आकर जान गंवा चुके हैं। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 2019 में अपनी एक रिपोर्ट में जानकारी दी थी कि अप्रैल 2018 तक पश्चिम बंगाल के नौ जिलों, असम के 18 जिलों, बिहार के 11 जिलों , यूपी के 17 जिलों, पंजाब के 17 जिलों, झारखंड के 3 जिलों और कर्नाटक के दो जिलों में आर्सेनिक का प्रभाव पाया गया।
हाल ही में हुई कुछ शोध में यह भी दावा किया गया है कि आर्सेनिक का प्रभाव भारतीयों पर सिर्फ भूमिगत पानी से ही नहीं, बल्कि भोजन से भी जुड़ा हुआ है। इससे बड़ी आबादी खतरे में है। अशोक घोष के अनुसार पका हुआ चावल भी आर्सेनिक का सबसे बड़ा स्रोत है। इसके बाद आलू और गेहूं हैं। आर्सेनिक युक्त पानी पीने से पेट का कैंसर, किडनी फेल, हृदय संबंधी बीमारी, फेफड़ों का कैंसर, मस्तिष्क संबंधी बीमारी, सांस संबंधी बीमारी और डायबिटीज का खतरा रहता है। आर्सेनिक का प्रभाव पहली बार पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश में देखने को मिला था। इसके बाद इसका प्रभाव गंगा नदी के किनारे बसे पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश, नेपाल के दक्षिणी हिस्से, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, असम तक में पाया गया।
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