कुमार गौरव
- धान की सीधी बुआई जून के अंतिम व जुलाई के दूसरे सप्ताह तक करें, बीज की मात्रा 10-12 किलो गोंद कतीरा लेपित बीज प्रति एकड़ रखें
पूर्णिया। जिले में धान की सीधी बुआई का फार्मूला अपनाया जा रहा है। सीधी बुआई यानी डायरेक्ट सीडेड राइस (डीएसआर) तकनीक से कौशल्या फाउंडेशन के प्रोजेक्ट अफसर नवल किशोर झा के दिशा निर्देश पर 50 एकड़ खेत में कम लागत पर धान की बुआई की जा रही है। इस तकनीक से खेत में जुताई की जरूरत नहीं पड़ती है। जिससे लेबर कॉस्ट भी कम आता है और किसानों को जेब ढ़ीली नहीं करनी पड़ती है। यही नहीं एक बार बुआई के बाद दोबारा धान का पौधा खेत में नहीं लगाना पड़ता है। इस संबंध में श्री झा कहते हैं कि धान की सीधी बुआई जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह तक कर लेना फायदेमंद होता है। बता दें कि श्री झा के दिशा निर्देश पर केनगर प्रखंड अंतर्गत बनियापट्टी, काझा, परोरा, सतकोदरिया में सीधी तकनीक से घनश्याम यादव, प्रशांत मधुकर, नरेश यादव, सुनील कुमार साह, तारकेश्वर यादव, सिंटू कुमार ने धान की बुआई की है।

...इस तरह से करें धान की बिजाई :
बीज की मात्रा 10-12 किलो गोंद कतीरा लेपित बीज (प्रॉसेस्ड सीड) प्रति एकड़ रखें। बिजाई बतर वाले खेतों में गेहूं की तरह मशीन व छींटे प्रणाली से करें। बिजाई के तुरंत बाद एक लीटर पेंडामेथलीन (स्टॉम्प) 200 लीटर पानी मे प्रति एकड़ की दर से स्प्रे भी बहुत जरूरी है। पहली सिंचाई देर से व बिजाई के लगभग 15-20 दिनों के बाद करें। उसके बाद सीमित सिंचाई गीला सूखा प्रणाली से 15 दिनों के अंतराल पर कितनी बारिश हुई उसके आधार पर करें। बता दें कि गोंद कतीरा लेप तकनीक अपनाने से आधी सिंचाई से धान पक जाती है। नई बीज तकनीक हर्बल हाइड्रोजल पर आधारित है जिसमंे हर्बल हाइड्रोजल गोंद कतीरा लेपित बीज की बुआई की जाती है। इससे सभी फसलों के पौधों के जड़ों में जल्दी सूखा नहीं आता। सिंचाई की जरूरत कम हो जाती है। फसलों में पहली सिंचाई देर से व कम सिंचाई करने के कारण खरपतवार, बीमारियां और कीट प्रकोप भी कम आता है। नई बीज लेपित तकनीक पानी बचाने व खरपतवार की रोकथाम करने में सक्षम है। बिजाई के तुरंत बाद एक लीटर प्रति एकड़ की दर से पेंडामेथलीन 200 लीटर पानी में छिड़काव करने और पहली सिंचाई देर से करने पर जो खरीफ फसलों में बिजाई के लगभग 15-20 दिनों व रबी फसलों में लगभग 45-50 दिनों के बाद की जाती है।

…डीएसआर तकनीक में पानी व ईंधन की होती है बचत :
धान की परंपरागत बिजाई की तुलना में डीएसआर में कम पानी खर्च होता है। साथ ही ईंधन, समय और खेती की लागत के नजरिए से भी डीएसआर 30 फीसदी तक फायदेमंद है। डीएसआर तकनीक पानी के किफायती उपयोग तथा मिट्टी का समुचित ध्यान रखने की प्रेरणा देती है। डीएसआर में ऐसे ईंधन का उपयोग परंपरागत बिजाई की तुलना में कम होता है। श्री झा ने बताया कि खेत को दो तीन जुताई लगाकर तैयार करें। ड्रिल से 3-5 सेमी गहराई पर बिजाई करें। खेत की तैयारी एवं बिजाई शाम को करें। ड्रिल से 2-3 सेमी गहराई पर बिजाई करें। बिजाई के तुरंत बाद सिंचाई करें। चार पांच दिन बाद फिर सींचे। बिजाई के तुरंत बाद व सूखी बिजाई में 0-3 दिन बाद पैंडीमैथालीन 1.3 लीटर प्रति एकड़ स्प्रे करें। बता दें कि सीधी बिजाई में रोपाई वाली धान की बजाए ज्यादा खरपतवार आते हैं और वे भिन्न भी होते हैं। दोनों अवस्था में 15 से 25 बाद बिस्पायरीबैक 100 एमएल प्रति एकड़ स्प्रे करें। इस तकनीक से कम खर्च में एक एकड़ खेत में 20 क्विंटल तक धान की उपज होती है।