• भारत समर्थित अमेरिका सीपीईसी को सफल नहीं होने देगा:खालिद मंसूर

इस्लामाबाद। खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे…ये कहावत इन दिनों पाकिस्तान पर सटीक बैठती है। विदेशी कर्ज में डूबे पाकिस्तान में चल रही चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना सीपीईसी का काम धीमा पड़ गया है और अब हर बार की तरह ही पाकिस्तान ने इसमें भी भारत को कोसने का एंगल खोज निकाला है। सीपीईसी अथॉरिटी के चीफ ने कहा है कि भारत के समर्थन से अमेरिका अरबों डॉलर की सीपीईसी परियोजना को नुकसान पहुंचाना चाहता है। परियोजना को पाकिस्तान की आर्थिक जीवनरेखा करार दिया गया है।
सीपीईसी परियोजना 2015 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पाकिस्तान यात्रा के दौरान शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य पश्चिमी चीन को सड़कों, रेलवे, और बुनियादी ढांचे एवं विकास की अन्य परियोजनाओं के नेटवर्क के माध्यम से दक्षिण-पश्चिम पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ना है। सीपीईसी मामलों पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के विशेष सहायक खालिद मंसूर ने कराची में सीपीईसी शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, “उभरती हुई भू-रणनीतिक स्थिति के दृष्टिकोण से एक बात साफ है कि भारत समर्थित अमेरिका सीपीईसी का विरोधी है। वह इसे सफल नहीं होने देगा। इसे लेकर हमें एक रुख तय करना होगा।” सीपीईसी चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) का हिस्सा है। बीआरआई के तहत चीन सरकार करीब 70 देशों में भारी निवेश कर रही है। उन्होंने कहा कि अमेरिका और भारत द्वारा पाकिस्तान को चीन के बीआरआई से “बाहर रखने के लिए चालें चली जा रही हैं।” मंसूर ने यह भी कहा कि इस्लामाबाद सीपीईसी परियोजना को अफगानिस्तान तक ले जाना चाहता है और इसके लिए उसने तालिबान नीत अफगानिस्तान सरकार से चर्चा भी की है। मंसूर ने यह भी दावा किया कि यूरोपिय देश भी इस परियोजना में रुचि ले रहे हैं और उनके राजदूत पाकिस्तान से संपर्क कर रहे हैं।

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