नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने गहरे समुद्र में संसाधनों का पता लगाने और महासागरीय संसाधनों के सतत उपयोग के लिए गहरे समुद्र प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के उद्देश्य से “गहरे समुद्र अभियान” पर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इस अभियान को चरणबद्ध तरीके से लागू करने के लिए 5 वर्ष की अवधि की अनुमानित लागत 4,077 करोड़ रुपए होगी। 3 वर्षों (2021-2024) के लिए पहले चरण की अनुमानित लागत 2823.4 करोड़ रुपये होगी। गहरे समुद्र परियोजना भारत सरकार की नील अर्थव्यवस्था पहल का समर्थन करने के लिए एक मिशन आधारित परियोजना होगी। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओइएस) इस बहु-संस्थागत महत्वाकांक्षी अभियान को लागू करने वाला नोडल मंत्रालय होगा। इस गहरे समुद्र अभियान में निम्नलिखित छह प्रमुख घटक शामिल हैं i गहरे समुद्र में खनन और मानवयुक्त पनडुब्बी के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास: तीन लोगों को समुद्र में 6,000 मीटर की गहराई तक ले जाने के लिए वैज्ञानिक सेंसर और उपकरणों के साथ एक मानवयुक्त पनडुब्बी विकसित की जाएगी। बहुत कम देशों ने यह क्षमता हासिल की है। मध्य हिंद महासागर में 6,000 मीटर गहराई से पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स के खनन के लिए एक एकीकृत खनन प्रणाली भी विकसित की जाएगी। भविष्य में संयुक्त राष्ट्र के संगठन इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी के द्वारा वाणिज्यिक खनन कोड तैयार किए जाने की स्थिति में, खनिजों के अन्वेषण अध्ययन से निकट भविष्य में वाणिज्यिक दोहन का मार्ग प्रशस्त होगा। यह घटक नील अर्थव्यवस्था के प्राथमिकता वाले क्षेत्रों गहरे समुद्र में खनिजों और ऊर्जा की खोज और दोहन में मदद करेगा।
ii. महासागर जलवायु परिवर्तन सलाहकार सेवाओं का विकास: अवधारणा घटक के इस तथ्य के तहत मौसम से लेकर दशकीय समय के आधार पर महत्वपूर्ण जलवायु परिवर्तनों के भविष्यगत अनुमानों को समझने और उसी के अनुरूप सहायता प्रदान करने वाले अवलोकनों और मॉडलों के एक समूह का विकास किया जाएगा। यह घटक के नील अर्थव्यवस्था के प्राथमिकता वाले क्षेत्र तटीय पर्यटन में मदद करेगा।

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