नई दिल्ली। पिता की संपत्ति में पुत्रियों को भी पुत्रों के बराबर अधिकार मिलना चाहिए। इस मुद्दे पर पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश में विवाद तेज हो गया है।राज्य सरकार विधानसभा के वर्षाकालीन अधिवेशन में इस पर एक विधेयक पेश करने वाली थी। लेकिन विभिन्न संगठनों के विरोध की वजह से सरकार ने फिलहाल इसे स्थगित कर दिया है। हालांकि महिला आयोग ने इस मसौदे का समर्थन किया है। उसी ने इस विधेयक का मसौदा मुख्यमंत्री पेमा खांडू को सौंपा था। पूर्वोत्तर राज्यों की कई जनजातियों में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार मिले हैं। मेघालय के खासी और जयंतिया हिल्स इलाके में रहने वाला खासी समुदाय मातृसत्तात्मक परंपराओं के लिए जाना जाता है। इस समुदाय में फैसले घर की महिलाएं ही करती हैं। बच्चों को उपनाम भी मां के नाम पर दिया जाता है। छोटी पुत्री ही घर व संपत्ति की मालकिन होती है और उसी के नाम पर वंश आगे चलता है। मेघालय के अलावा, मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश के कई कबीलों और जनजातियों में तो महिलाएं ही परिवार की मुखिया होती हैं। मणिपुर में दुनिया का इकलौता ऐसा बाजार (एम्मा मार्केट) है जहां तमाम दुकानदार महिलाएं ही हैं। ताजा मामला अरुणाचल प्रदेश सरकार ने पुत्रियों को भी पैतृक संपत्ति में पुत्रों के समान अधिकार देने की योजना को कानूनी जामा पहनाने के लिए विधानसभा में एक विधेयक पेश करने का फैसला किया था। राज्य महिला आयोग, अरुणाचल प्रदेश विमिंस वेलफेयर सोसाइटी और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने मिल कर इस विधेयक का मसौदा तैयार किया था। लेकिन राज्य के विभिन्न संगठनों के विरोध और इस मुद्दे पर बढ़ते विवाद की वजह से सरकार ने फिलहाल इस योजना को स्थगित कर दिया है। राज्य के विभिन्न संगठनों और राजनीतिक दलों ने उक्त मसौदे को आदिवासी-विरोधी और अरुणाचल-विरोधी करार दिया है। उनकी दलील है कि इससे शादी के जरिए बाहरी लोगों के लिए राज्य में आदिवासियों की जमीन पर कब्जा करने का रास्ता खुल जाएगा। विरोध करने वाले संगठनों का कहना है कि यह प्रस्तावित कानून तो ठीक है। लेकिन अपनी जनजाति से बाहर के युवकों से शादी करने वाली युवतियों को यह अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए। लेकिन अखिल अरुणाचल प्रदेश छात्र संघ (आप्सू) ने इस मसौदे का विरोध किया है। संगठन का कहना है कि वह ऐसे किसी भी विधेयक का विरोध करेगा जो आदिवासियों के अधिकारों और परंपराओं का हनन करता हो। उसका कहना है कि आदिवासी महिलाओं को पैतृक संपत्ति का उत्तराधिकारी बनाने में कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन अगर कोई आदिवासी महिला किसी गैर-आदिवासी से शादी करे तो उसे इस अधिकार से वंचित करना होगा।