नई दिल्ली । इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च कोरोना वायरस के इलाज में प्लाज्मा के अंधाधुंध उपयोग को रोकने के लिए विशिष्ट मानदंड को पूरा करने वाले प्लाज्मा थेरेपी को लेकर एक नई एजवाइजरी जारी की है। आईसीएमआर की एडवाइजरी में कहा गया क्लिनिकल परिणामों में सुधार, रोग की गंभीरता को कम करने, कोविड -19 रोगियों के अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु की अवधि में सीपीटी के लाभ प्लाज्मा में विशिष्ट एंटीबॉडी की एकाग्रता पर निर्भर करते हैं जो SARS-CoV-2 के प्रभावों को बेअसर कर सकते हैं। यह अनुमान लगाया जाता है कि SARS-CoV-2 के खिलाफ विशिष्ट एंटीबॉडी की कम सांद्रता वाले आक्षेपिक प्लाज्मा कोविड -19 रोगियों के इलाज के लिए कम फायदेमंद हो सकते हैं। एडवाइजरी में आगे कहा गया है यह सलाह इसलिए इस सिद्धांत को मानती है क्योंकि प्लाज्मा के लिए एक संभावित दाता में कोविड-19 के खिलाफ काम करने वाले एंटीबॉडी की पर्याप्त एकाग्रता होनी चाहिए यह इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि एक संभावित प्राप्तकर्ता में कोविड -19 के खिलाफ एंटीबॉडी की मौजूदगी से कैन्फ्यूसेंट प्लाज्मा का निरर्थक हस्तक्षेप हो जाता है। सलाहकार के अनुसार, संभावित प्राप्तकर्ताओं में वायरल बीमारी के शुरुआती चरण में रोगी को लक्षणों की शुरुआत 3-7 दिन में होती है, लेकिन 10 दिनों से अधिक नहीं और उचित प्रतिपरीक्षण परीक्षण का उपयोग करते हुए कोविड -19 के खिलाफ कोई एंटीबॉडी जो Sars-Cov-2 के खिलाफ लंबे समय तक चलने वाला एंटीबॉडी है। एक सूचित सहमति प्राप्तकर्ता या उनके परिवार से आक्षेपित प्लाज्मा को स्थानांतरित करने से पहले लेनी होती है। केवल पुरुष और वो महिलाएं जिन्होंने कभी गर्भधारण नहीं किया है, इसके अलावा 18 से 65 वर्ष के बीच के लोग ही प्लाज्मा दान कर सकते हैं। आईसीएमआर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा इस प्रायोगिक चिकित्सा के दुरुपयोग की खबरें थीं और यह बेतरतीब ढंग से दी जा रही थी यही वजह है कि एडवाइजरी को इसे बाहर रखना पड़ा।

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