नई दिल्ली। बच्चों के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने में तालाबंदी बहुत बड़ी बाधा बन रही है। अमेरिका के प्रतिष्ठित मैसिचुएट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी- मेडिकल के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में यह दावा किया है।वैज्ञानिकों का कहना है कि लॉकडाउन में एक साल से जीवन बिता रहे बच्चे ऐसे वातावरण से दूर हैं, जिसमें उनका शरीर कई तरह के वैक्टीरिया और वायरसों के संपर्क में आता है और उन बाहरी हमलावरों से लड़ने के लिए तैयार होता है। एमआईटी-मेडिकल का कहना है कि सामान्यत: जब तक कोई बच्चा अपनी युवावस्था में पहुंचता है, तब तक उसके शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र (इम्युन सिस्टम) कई तरह के बैक्टीरिया-वायरसों के संपर्क में आ चुका होता है और इन आक्रमणों से निपटने की क्षमता भी ग्रहण कर चुका होता है। प्रतिरक्षा तंत्र अपनी इस क्षमता को याद रखता है और आगे के जीवन में जब भी शरीर पर किसी रोगाणु का हमला होता है तो शरीर अपनी इस क्षमता का इस्तेमाल करता है, फिर चाहे वह लंबे लॉकडाउन का वक्त ही क्यों न हो। शोधकर्ता डॉ. डेविड स्ट्रेचन का कहना है कि घरों में संक्रमण से बचाव के लिए बच्चों के बार-बार हाथ धुलाए जाते हैं, या उन्हें ज्यादा स्वच्छ वातावरण में रखा जाता है। इस स्थिति के कारण बचपन में बच्चों के इम्यून का सामना रोगाणुओं से कम होता है जिससे उनके शरीर में एलर्जी की समस्याएं पैदा होने लगती हैं। ऐसे बच्चों के बड़े होने पर वे फूड एलर्जी से पीड़ित हो सकते हैं।

Previous articleकोरोना काल में अनाथ हुए बच्चों के लिए बीजेपी लाएगी योजना
Next articleसेबी ने इंडियाबुल्स वेंचर अधिकारियों पर 1.05 करोड़ का जुर्माना लगाया

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here