नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम.वेंकैया नायडू ने ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित वर्ल्ड यूनिवर्सिटीज समिट (विश्व विश्वविद्यालय शिखर सम्मेलन) को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित किया। केंद्रीय शिक्षा एवं कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी शिखर सम्मेलन को संबोधित किया। शिखर सम्मेलन का विषय “भविष्य के विश्वविद्यालय: संस्थागत मजबूती, सामाजिक उत्तरदायित्व और सामुदायिक प्रभाव का निर्माण” था। उपराष्ट्रपति ने विश्वविद्यालयों से जलवायु परिवर्तन, गरीबी और प्रदूषण जैसी वैश्विक चुनौतियों का हल तलाशने के लिए विचारशील नेतृत्व प्रदान करने को कहा। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों को दुनिया के सामने आने वाले विभिन्न सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा करना चाहिए और वैसे विचार पेश करने चाहिए जिन्हें सरकारें अपनी जरूरतों और उपयुक्तता के अनुसार लागू कर सकें। उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह किसी की सीखने और समझ के स्तर को बढ़ाता है। उन्होंने कहा, “किसी विषय को दूसरी भाषा में समझने के लिए पहले उस भाषा को सीखना और उसमें महारत हासिल करना होगा, जिसमें काफी मेहनत की जरूरत होती है। हालांकि, मातृभाषा में सीखने के दौरान ऐसा नहीं होता है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि देश सैकड़ों भाषाओं और हजारों बोलियों का घर है। उन्होंने कहा, “हमारी भाषाई विविधता हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की आधारशिलाओं में से एक है। नायडू ने कहा कि हमारी मातृभाषा या हमारी मूल भाषा हमारे लिए बहुत खास है, क्योंकि हम इसके साथ बहुत गहरा संबंध साझा करते हैं। केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए, भारत के शिक्षा क्षेत्र में बदलाव लाकर उसे वैश्विक मानकों के अनुरूप लाने, अनुसंधान और नवाचार को प्रोत्साहित करने और अच्छी तरह से जिम्मेदार नागरिक – जो वैश्विक नागरिक या ‘विश्व मानव’ भी हैं, का निर्माण करने से जुड़ी सरकार की प्रतिबद्धता पर जोर दिया। प्रधान ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ने भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली के लिए एक नई कल्पना का सूत्रपात किया है। यह एक आत्मनिर्भर भारत के निर्माण से जुड़े प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सपने को रेखांकित करता है। उन्होंने कहा कि गुणवत्ता, समानता, सुगम्यता और वहनीयता नई शिक्षा नीति के चार स्तंभ हैं और इनके सहारे ही एक नये भारत का उदय होगा।