पूरे देश में आज छठ का पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित देव सूर्य मंदिर सूर्योपासना के लिए सदियों से आस्था का केंद्र बना हुआ है। आमतौर पर सूर्य मंदिर पूर्वाभिमुख (पूर्व की दिशा में खुलने वाले) होता है, किन्तु इस मंदिर के पश्चिमाभिमुख (पश्चिम दिशा में खुलने वाले) होने की वजह से त्रेतायुगीन इस मंदिर की महत्ता अधिक है।
इस मंदिर की महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रति वर्ष चैत्र और कार्तिक महीने में होने वाले छठ व्रत के लिए यहां लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। अभूतपूर्व स्थापत्य कला वाले इस मशहूर मंदिर के बारे में मान्यता है कि इसका निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं अपने हाथों से किया था। काले और भूरे पत्थरों से निर्मित मंदिर की बनावट ओडिशा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से मेल खाती है।
मंदिर के निर्माणकाल के बारे में मंदिर के बाहर लगे एक शिलालेख के अनुसार, 12 लाख 16 हजार वर्ष पूर्व त्रेता युग बीत जाने के बाद इला पुत्र ऐल ने इस देव सूर्य मंदिर का निर्माण आरंभ करवाया था। शिलालेख से पता चलता है कि इस पौराणिक मंदिर के निर्माण काल को एक लाख पचास हजार वर्ष से अधिक बीत चुके हैं। इस मंदिर में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर प्रतिमाएं अपने तीनों रूपों- उदयाचल, मध्याचल और अस्ताचल सूर्य के रूप में विद्यमान हैं। बताया जाता है कि पूरे भारत में सूर्यदेव का यही एक मंदिर है जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है।