शोपियां। एक साल से भी ज्यादा समय होने को आया, लेकिन एक पिता का इंतजार खत्म नहीं हुआ। सेना के लिए काम करने वाले शाकिर वागे के बारे में समझा जाता है कि उन्हें आतंकवादियों ने मार डाला और उन्हें किसी अज्ञात जगह पर दफना दिया है, लेकिन इस घटना के साल भर बीत जाने के बाद भी उनके पिता को आस है कि वह किसी न किसी दिन अपने बेटे की कब्र खोज लेंगे।
शाकिर के परिवार ने दक्षिण कश्मीर के शोपियां से करीब 15 किलोमीटर दूर अपने गांव में इस माह के प्रारंभ में बेटे की मौत की बरसी मनाई। शाकिर परिवार का भरण-पोषण करने वाले एकमात्र सदस्य थे। उनके पिता 56 वर्षीय मंजूर वागे ने कहा मेरे पास परिवार की देखभाल करने वाला कोई नहीं है। अब इस उम्र में मुझे रोजी-रोटी की खातिर काम की तलाश में खेतों में भटकना पड़ता है।
शाकिर को दो अगस्त को अगवा कर लिया गया था और समझा जाता है कि उनकी हत्या कर दी गई। तब से वागे परिवार मुसीबतों से जूझ रहा है। शाकिर के लापता हो जाने के बाद मंजूर का बड़ा बेटा ट्रक डाईवर मुजफ्फर किसी दुर्घटना का शिकार हो गया और विकलांग हो गया। मंजूर का एक अन्य बेटा शहनवाज स्नातक में पढ़ रहा है। मायूस मंजूर को दुख है कि जिला प्रशासन और पुलिस ने शाकिर के शव को ढूंढने में मदद करने की परिवार की गुहार पर कोई ध्यान नहीं दिया। शाकिर अपने घर से बीही बाघ स्थित सेना के कैंप जा रहे थे, तभी आतंकवादियों ने उनका अपहरण कर लिया था। अगली सुबह, उनकी कार जली हुई अवस्था में मिली और बाद में खून से सने उनके कपड़े भी बरामद किए गए थे। वह प्रादेशिक सेना की 162वीं बटालिन में तैनात थे जो सेना की जम्मू कश्मीर लाईट इंफैंट्री से संबद्ध थी।
सेना के एक अधिकारी ने बताया कि शुरू में माना गया कि वह शायद आतंकवादियों के साथ चले गए, लेकिन बाद में प्रतिबंधित अल बदर आतंकवादी संगठन के स्वयंभू कमांडर शकूर पार्रे ने शाकिर की हत्या करने का दावा किया।
पिछले साल अगस्त में आतंकवाद निरोधक अभियान के दौरान 44 राष्ट्रीय राइफल्स ने अलबद्र के आतंकवादी शोएब का आत्मसमर्पण कराया जिसने जांचकर्ताओं को बताया कि अपहरण करने के बाद पार्रे ने शाकिर की उसी दिन हत्या कर दी थी एवं किसी अज्ञात स्थान पर दफना दिया था। अधिकारियों ने बताया कि सेना ने पिछले एक साल में 27 स्थानों पर खुदाई की और उसने शाकिर को मृत (समझ लेने की बात) घोषित करने के लिए कागजातों पर जरूरी कार्रवाई की ताकि वागे परिवार को कुछ राहत मिले। उन्होंने बताया कि कानूनी रूप से कागजातों पर गुमशुदगी के सात साल बाद ही जरूरी कार्रवाई होती है, लेकिन परिवार वित्तीय मुश्किलों से गुजर रहा था इसलिए मानवीय आधार पर जरूरी कार्रवाई की गई।
मंजूर ने कहा अपने बेटे का अता-पता लगाने के लिए मैंने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। वह मेरे गांव के आसपास है। मैं उसे ढूंढूंगा। मैं भले ही वित्तीय रूप से मजबूत नहीं हूं, लेकिन मैं जो कुछ कमाता हूं, मैं उसे सभी संभावित स्थानों पर खुदाई में मजदूरों एवं मशीनों पर खर्च कर देता हूं। मंजूर को सात्वंना देते हुए उनके दोस्त जावेद ने बताया कि इस परिवार को उन स्थानों पर खुदाई के वास्ते जेसीबी मशीन किराये पर लेने के लिए बड़ी राशि लगानी पड़ी जहां शाकिर की कब्र हो सकती है।