मदरलैंड संवाददाता, भैरोगंज

कहते हैं कि विपत्ति में अपना साया भी साथ नहीं होता। यह कहावत तब चरितार्थ  दिखाई पड़ता है ,जब हम भोलापुर गाँव आते हैं । एक तो अत्यंत गरीबी की हालत और ऊपर से कुष्ट रोग अथवा दिव्यांगता..! फिलहाल​ ऐसे जीवन जीने वालों की किसी ने आज तक सुधी ना ली हो तो..जरा सोच कर देखिये की ऐसे इंसान पर क्या गुजरती होगी..!? कोई शक नही के ऐसी परिस्थितियां हमारी कल्पना की हद से अलग भी हो सकती हैं।असल मे बगहा प्रखंड दो के भोलापुर गांव के सतन मुखिया और उसकी बहु दुलारी देवी और गांव के एक अन्य दिव्यांग कमलेश ठाकुर के जीवन का सच यहीं है ।सतन मुखिया  (करीब 55 बर्ष)  को एक बेटा और बहू के अलावे छोटे छोटे मासूम कुल मिलाकर पांच पोते और पोतियां हैं । इनके गुरबत का आलम यह है के गांव की झोपड़ी पिछले दिनों किसी कारण ढह गई, तो पूर्व पैक्स अध्यक्ष के बागीचा में बना एक अदद झोपड़ा ,आज आशियाना बना है । बागीचे में एक छोटी सी झोपड़ी के इर्दगिर्द इन दो शारीरिक लाचारों के साथ पांच मासूम जिंदगियां ग़ुरबत के दिन काटने को मजबूर है । बकौल सतन मुखिया उनका एकलौता पुत्र रमेश मुखिया कई माह पूर्व खेतिहर मजदूर के तौर पर पंजाब कमाने गया है । क्योकि परिवार के भरणपोषण की जबाबदारी उसके कंधों पर है । इसलिये घर द्वार छोड़कर महीनों पहले उसे सुदुर पंजाब मजदूरी करने जाना पड़ा । लेकिन बदकिस्मती से कोरोना के इस संकट के दौरान वह लोकडाउन में फंस गया । इसे समय का कुचक्र कहें या इस परिवार की बदकिस्मती, सतन की बहू दुलारी भी पूर्व में एक गैंडे के हमले के बाद शारीरिक अपंगता के साथ शेष जीवन जीने को अभिशप्त है । दरअसल विगत कई वर्षों पूर्व वह गैंडे के हमले में बुरी तरह घायल हो गयी थी। तब वह अपने मायके जंगल के निकटवर्ती सिरिसिया गांव गई थी । इस हमले से पहले उसे पहली संतान प्राप्त  थी । वह बताती है कि गैंडे ने अचानक हमला तब किया जब वह खेतों में काम कर रही थी । स्थानीय लोगों के शोर मचाने के बाद किसी तरह उसकी जान बच गई । लेकिन बचाये जाने तक बुरी तरह घायल हो गयी थी । जान बचाने के लिये अपने छोटी सी जमीन के टुकड़े को भी अन्ततः बेच देना पड़ा । खैर ,जान तो बच गया लेकिन शारीरिक स्थिति बरकार नहीं रही । फिलहाल ये परिवार गुरबत में जीने को विवश है । सतन मुखिया बताते हैं के राशनकार्ड की बात छोड़ दें,तो उन्हें किसी अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ अभी तक नहीं मिला है । दुःखद बात यह के शारीरिक और आर्थिक रूप से रुग्ण इस परिवार के उन पाँचों नौनिहालों का भविष्य भी अंधकारमय प्रतीत हो रहा है ।
​इससे मिलती जुलती दूसरी कहानी इस गांव के कमलेश ठाकुर की भी है । नन्दलाल ठाकुर के पुत्र कमलेश इसी भोलापुर गांव के निवासी हैं । उनका कहना है के पहले वे शारिरिक रूप से बेहद तंदुरुस्त थे । लेकिन उन्हें पोलियो हो गया । अब आधा शरीर सामान्य रूप से काम नहीं करता । किसी तरह शारीरिक जिम्मेवारियां पूरी हो जाएं ,यहीं अधिक है । इनका कहना है कि कोई हमे महत्व नहीं देता । शारिरिक रूप से  लाचारी हमारी सबसे बड़ी विवशता है । बहुत लोंगो से मदद की गुहार लगाई है । लेकिन हमारी फरियाद सुनने वाला शायद कोई नहीं है । इसलिए मजबूरीवश नियती के हवाले हैं ।
​बहरहाल, ऐसे लोंगो को मदद की दरकार है । स्थानिय जनप्रतिनिधियों से लेकर प्रखंड स्तर के अधिकारियों के समन्वय से असल जरूरतमंदो को चिन्हित कर राहत पहुँचाई जा सकती है ।

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