नई दिल्ली। सीमा विवाद को लेकर चीन से जारी तनातनी के बीच भारतीय सेना ने पूर्वी लद्दाख समेत विभिन्न सीमाओं पर तैनात 40 साल पुराने लड़ाकू वाहनों को बदलने का फैसला किया है। इसके लिए प्रक्रिया शुरू की गई है,लेकिन इन्हें बदलते-बदलते भी अभी दो-तीन साल और लग जाएंगे। ये बुलेट प्रूफ वाहन होते हैं जिनमें हथियार भी फिट रहते हैं तथा युद्ध क्षेत्र में सैनिकों के आवागमन, जवाबी हमलों आदि के लिए बेहद सुरक्षित माने जाते हैं। सेना के सूत्रों ने बताया कि इन वाहनों का निर्माण देश में ही करने का निर्णय लिया गया है। इसलिए बुधवार को सेना की तरफ से निर्माताओं से प्रस्ताव मांगे हैं। हालांकि, घरेलू निर्माताओं को छूट दी गई है कि वे इनके निर्माण के लिए विदेशी कंपनियों के साथ भी साझीदारी कर सकते हैं। सेना के सूत्रों के अनुसार, हर बटालियन को युद्ध अभियानों के दौरान सैनिकों के सुरक्षित आवागमन के लिए इस प्रकार के कांबेट व्हीकल दिए जाते हैं। सेना के पास करीब 1700 ऐसे वाहन हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर 1980 के दशक के बीएमपी व्हीकल हैं जो रूस से लिए गए थे। बाद में कुछ वाहन आर्डिनेंस फैक्टरियों ने भी बनाकर दिए थे। तब से यही चल रहे हैं। अब इसकी जगह फ्यूचरिस्टिक इंफेंट्री कांबेट व्हीकल (एफआईवीसी) खरीदे जाएंगे। सेना के सूत्रों ने कहा कि इन सभी वाहनों को बदलने की जरूरत हैं। सेना में इन्हें अब विंटेज व्हीकल के रूप में जाना जाता है। लंबे समय से सेना इन्हें बदलने की मांग करती आ रही है। लेकिन करीब 60-65 हजार करोड़ की कुल लागत के इन वाहनों की खरीद अभी तक टलती आ रही थी। बहरहाल, अब सरकार ने इन्हें खरीदने का फैसला लिया है तथा घरेलू निर्माताओं से प्रस्ताव मांगे हैं। सूत्रों के अनुसार, आपूर्तिकर्ताओं को कांट्रेक्ट साइन होने के बाद प्रतिवर्ष 75-100 वाहनों की आपूर्ति करनी होगी। इसमें से 55 फीसदी वाहन गन के साथ होंगे तथा बाकी अन्य विशेषताओं वाले होंगे। निर्माताओं से एक सप्ताह के भीतर प्रस्ताव मांगे गए हैं। यह वाहन शून्य से 20-30 डिग्री नीचे और 45 डिग्री से भी अधिक तापमान में कार्य करने में सक्षम होते हैं। इन्हें नदी-नालों, जंगलों, रेल आदि कहीं भी 10 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलाया जा सकता है। ये न सिर्फ बुलेट प्रूफ होते हैं बल्कि भारी गोला बारुद के हमले का भी इन पर कोई असर नहीं होता है।

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