नई दिल्ली। भारत में सत्ता पक्ष और विपक्ष जहां पेगासस जासूसी विवाद, कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन, मुद्रास्फीति और देश की अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर एक-दूसरे से उलझे हैं, वहीं पूर्वोत्तर में तिब्बत से लगी सीमा पर सब कुछ सामान्य नहीं है। अरुणाचल की 1126 किमी लंबी सीमा तिब्बत से सटी है। चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानता है और राज्य को भारत के हिस्से के तौर पर उसने कभी मान्यता नहीं दी है। बीते साल गलवान घाटी में हुए संघर्ष के बाद से ही चीन ने पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश से लगी सीमा पर अपनी गतिविधियां असामान्य रूप से बढ़ा दी हैं। बांध से लेकर हाइवे और रेलवे लाइन का निर्माण हो या फिर भारतीय सीमा के भीतर से पांच युवकों के अपहरण का मामला, चीनी सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के भारतीय सीमा में घुसपैठ की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। अब यह बात सामने आई है कि चीन सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले भारतीय युवाओं की भर्ती पीएलए में करने का प्रयास कर रहा है। इसके बाद मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने केंद्र से सीमावर्ती इलाकों में आधारभूत परियोजनाओं का काम तेज करने का अनुरोध किया है ताकि बेरोजगारी और कनेक्टिविटी जैसी समस्याओं पर अंकुश लगाया जा सके। कांग्रेस के पूर्व सांसद और फिलहाल पासीघाट के विधायक निनोंग ईरिंग ने दावा किया है कि चीन सरकार अपनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) में अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों के युवकों की भी भर्ती करने का प्रयास कर रही है। साथ ही राज्य से सटे तिब्बत के इलाकों से भी भर्तियां की जा रही हैं। सोशल मीडिया पर अपने एक वीडियो संदेश में कांग्रेस विधायक ने कहा है, “अब तक मिली सूचना के मुताबिक, पीएलए तिब्बत के अलावा अरुणाचल प्रदेश के युवकों को भी भर्ती करने का प्रयास कर रही है। यह बेहद गंभीर मामला है। ईरिंग ने केंद्रीय गृह और रक्षा मंत्रालय से इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए जरूरी कदम उठाने की अपील की है। कांग्रेस नेता कहते हैं, “तिब्बत की सीमा से सटे इलाकों में रहने वाली निशी, आदि, मिशिमी और ईदू जनजातियों और चीन की लोबा जनजाति के बीच काफी समानताएं हैं। उनकी बोली, रहन-सहन और पहनावा करीब एक जैसा है।